ख्वाबों की पतंग
ख्वाबों की
रंगीन पतंगें
उङती रही
जीवन के आसमान में
इठलाती, बलखाती
धागे से अपना
रिश्ता निभाती....।
लेकिन जब
किसी दूसरे धागे ने
पहले को काटा
पतंग और धागे बांटा
पतंग ने
नहीं की
एक क्षण की देर
समेटकर अपनी समस्त हसरते
समा गई
मां धरती के आगोश में
बिना किसी शिकायत के
क्यों कि वो जानती है
अनंत है आकाश
अनंत है ख्वाहिशें
पर
जीवन है
क्षणभंगुर, छोटा सा।
डॉ पूनम गुजरानी