My New Poem...!!!
यारों ज़बान का वजन
होता तो हैं बहूत कम
पर ज़बान को सँभाल
भी पाते हैं बहूत कम
लफ़्ज़ों का इस्तेमाल
भी है तो बहुत आसान
पर बोले हूएँ लफ़्ज़ को
निभा पाते हैं बहूत कम
हर लफ़्ज़ मायने रखते है
पर लफ़्ज़ों के सही मायने
समझ पाते हैं बहूत कम
दिवारें दिल के ख़ानों में
प्रभु ने बना कर हमें भेजा
पर हरेक खानें की बुलंदि
तक पहुँच पाते बहूत कम
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