जिस भारत का वासी हूँ, बात वहीं की बतलाऊं।
कड़वी है मगर सुनो इसको, नेता सा सुनना सिखलाऊं।।
जिस भारत की आजाद नसों, में लहू बहा नारी का।
वहां नहीं दिखता कोई हल, उस स्त्री की लाचारी का।।
तुम्ही बताओ क्या यह देश, तुम्हें आजाद सा लगता है।
यूँ दुष्कर्म रहे होते जो, तो कल बर्बाद सा लगता है।।
करो नपुंसक उसको जो, प्रवृत्ति का व्यभिचारी हो।
ऐसा कोई कार्य करो, कि नहीं दुखी अब नारी हो।।
-Archit Pathak