एक हसीना मुझसे ये पूछे
क्या है तेरी कोई महबूबा
मैं कहुँ क्या तेरा है
आशीक कोई आवारा
वो कहे ना मेरा है
मैं कहुँ ना मेरी है
खैर छोडो़ रात ये सुहानी है
तू लगदी अफ़गानी है
तेरा चेहरा नूरा नी है
देखके तेरा जिस्म
आज रात को पका मेरे अंदर से
निकल ने वाली सूनामी है