Hindi Quote in Book-Review by Vivek Mishra

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फणीश्वर नाथ रेणु लोक में रचे - बसे और आंचलिकता में पगे हिंदी के ऐसे कथाकार हैं जिनकी रचनाओं में लोक सजावट का सामान नहीं है, वह रचना के बाहर से थोपा हुआ नहीं है बल्कि अपने जीवंत और उदात्त रूप में एक किरदार की तरह कथा में घुला मिला है। रेणु को पड़ते हुए लगता है कि उनके किरदार उस लोक की ज़मीन से अपने आप उठे चले आ रहे हैं। वे लेखक के कहे से नहीं बल्कि उस गांव - देहात में अपने सदियों के सुख - दुख, उसके अपने संघर्ष की थाती के साथ, बिना कथा के किसी विशेष तरह के ढांचे की परवाह किए, बिलकुल सहज अपने स्वभाव और अनुकूलन के अनुरूप व्यवहार कर रहे हैं।
ऐसी ही अपनी लोक की माटी से उठे किरदारों के सुख - दुख और संघर्षों में भी अपने भीतर कला, सौंदर्य और प्रेम की उदात्तता को बचाए रखने वाले किरदारों की लोकराग में विदापत के आलाप सी उठती, किसी मृदंग की थाप सी बजती कहानी है ' रसप्रिया '।
' रसप्रिया ' हज़ार तरह के रंग, रस, सुगंध और ध्वनियों की कहानी है। लोक के रंग, ग्रामीण जीवन और उसकी स्मृतियों का रस, प्रकृति की गंध और परिवेश की अनोखी ध्वनियां इसमें हमें सुनाई देती हैं।
कहानी में तीन मुख्य पात्र हैं पंचकौड़ी मिरदंगिया, रमपतिया और मोहना।
पहले पाठ में यह कहानी लोक संगीत के प्रेम में आकंठ डूबे पचकौड़ी की लगती है जो टेड़ी उंगली के कारण ठीक से मृदंग न बजा पाने वाला पर लगातार लोक संगीत को जिलाए रखने की इच्छा रखने वाला ऐसा लोक कलाकार है जो लोक में ही जन्मा, उसी में उसका प्रेम परवान चढ़ा और उसी में उसका जीवन धीरे - धीरे ढलता चला जा रहा है।
पर यहां इस एक किरदार में कई किरदार हैं जो अपने साथ पूरा परिवेश लिए चलते हैं, और दूसरे पाठ में थोड़ा गहराई में उतरने पर आप पाएंगे कि यह उस एक साथ चल रहे अन्य की भी कहानी है, जैसे कहानी उस एक कलाकार की है जिसके जोड़ की मृदंग दूर - दूर तक कोई नहीं बजा सकता। कहानी एक ऐसी बिरादरी के आदमी की भी है जो किसी बच्चे को ' बेटा ' कह दे तो गांव के लड़के उसे घेर कर पीटने को खड़े हो जाएं। कहानी एक संगीत के गुरु की भी है जो विदापत सिखा के अपने चेलों को हफ्तों में अपने हुनर का माहिर बना देता है और उसे उसका कोई सिला नहीं मिलता। कहानी उसकी उस जिजीविषा की भी है जहां वह संगीत सीखने के लिए अपनी जाति छुपाता है, पर कहानी तब उस नैतिकत बल की हो जाती है जब गुरु की बेटी उससे प्रेम करने लगती है और वह अपनी जाति छुपा कर उसका प्रेम स्वीकार नहीं करना चाहता और अपनी जाति बता कर वहां से भाग खड़ा होता है। कहानी उस दर्द, उस ग्लानि की भी है जिसके चलते मृदंग पर ऐसी थाप पड़ती है कि पचकौड़ी की उंगली हमेशा के लिए टेड़ी हो जाती है। कहानी उस विरह की भी है जिसमें पचकौड़ी मिरदांगिया बाकी का जीवन गले में मृदंग डाले कला के नाम पे भीख मांगता फिरता है। जिसका जीवन रमपतिया से एक बार बिछड़ने पर फिर कभी नहीं बसता। कहानी उसमें बची रह गई ममता की भी है जो निसंतान होते हुए भी आधा दर्जन बच्चों को पालने वाला बनाती है। ये सब एक ही चरित्र अलग - समय पर चमकते रंग हैं।
दूसरा पात्र मोहन है जो कहानी में एक उम्मीद , एक उजास कि तरह आता है, जो सुंदर है , जो कलाकार होने के तमाम गुण रखता है पर परिस्थिति वश जीवन की उन्हीं दुश्वारियों में जी रहा है जिनमें परिवेश के सारे चरित्र जाने अंजाने जीने को विवश हैं। उसमें गाना सुनने की ललक है, सीखने की इच्छा है, जो बिना किसी गुरु की शिक्षा के भी शुद्ध रसपिरिया गा सकता है। तीसरी रमपतिया है जो पूरी कथा में लगभग अनुपस्थित है, जो अंत में प्रकट होती है। कहानी उसके आने, उसके जीवन से जुड़े भेद खुलने, और पचकौड़ी को अपनी विरह से शापित जीवन से निजात दिलाने की तरफ धीरे - धीरे बढ़ ती है। रमपतिया कहानी में न होकर भी हमेशा बनी रहती है। कभी मृदंग की थाप में, कभी रस पिरिया की तान में, कभी मृदंगिया की उंगली के दर्द में, कभी उसके मन में उठती अपनी कला की उपेक्षा की टीस में। उसकी याद जैसे पचकौड़ी के सिर पर मंडराती चील है जो कई बार अनायस टिहुक जाती है। वह ओझल होकर भी लगातार उसपर नज़र रखती है, सिर पर मंडराती है।
कहानी जेठ की एक दुपहरिया से शुरू होती है जिसमें पचकौड़ी मोहना से मिलता है। वह मोहना के रूप को देखता रह जाता है। मोहना एक चरवाहा ही नहीं है वह एक संभावना है - लोक की, कला की, नृत्य की। जिसे पचकौड़ी संवारना चाहता है। पर जब बगैर किसी गुरु की शिक्षा के उसे ऐसी रस पिरिया गाते हुए सुनता है तो लगता है उसने उस कला का उत्कर्ष जो एक स्वप्न था, अपनी आंखों से मोहन में देख लिया। वह कहता है अब से में रसप्रिया नहीं गाऊंगा। अब केवल निर्गुण गाऊंगा।
कहानी न केवल लोक कला की उपस्थिति जो सतत यूं ही न जाने कब से रही आती है, और आती रहेगी, इसके लिए आश्वस्त करती है। बल्कि रमपतिया के आने से जिस तरह दर्द घुलते हैं, रमपतिया और पचकौड़ी न मिलकर भी, जिस तार से जुड़ते और मिलते हैं वह इसे एक बड़ी और हमेशा याद रही आने वाली कहानी बनाता है। और जिस तरह रमपतिया और पचकौड़ी का प्रेम अधूरा रहकर भी पूरा होता है, वह इस कहानी को रेणु की अन्य कहानियों से बिलकुल अलग और विशिष्ट बना देता है।
- विवेक मिश्र

Hindi Book-Review by Vivek Mishra : 111523204
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