#भुलाना
पैसो को भगवान बनाके ,
इंसान, इंसान को भूल गया।

परदेस मे घर बसा के,
अपना देश भूल गया।

मज़िल पर पहोंच के ,
हर सफर को भूल गया।

डिग्री का ताज़ पहेन के,
विधाता को भूल गया।

इस शानो-शोकत के शोर मे,
अपने बागबाँ को भूल गया।
-Mahek Parwani

Hindi Poem by Mahek Parwani : 111424452

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