अनपढ़ हूँ समझ नहीं पाई ,
तेरी आंखों मैं छिपे हुए दर्द को देख नहीं पाई ।
तेरे मस्तिष्क में जो ज्वालामुखी का उबाल जो उबल रहा था ,
मैं उसे समझ नहीं पाई ।
साक्षर होकर भी अनपढ़ बन खड़ी रही ,
जो तेरे दिल के दर्द को पढ़ ना पाई ।।
अनपढ़ समाज मुझे माफ कर देना ,
नासमझ समझ मेरी गलतियों को तुम अनदेखा कर देना ।।