Hindi Quote in Poem by Deepti Khanna

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अनपढ़ हूँ समझ नहीं पाई ,
तेरी आंखों मैं छिपे हुए दर्द को देख नहीं पाई ।

तेरे मस्तिष्क में जो ज्वालामुखी का उबाल जो उबल रहा था ,
मैं उसे समझ नहीं पाई ।

साक्षर होकर भी अनपढ़ बन खड़ी रही ,
जो तेरे दिल के दर्द को पढ़ ना पाई ।।

अनपढ़ समाज मुझे माफ कर देना ,
नासमझ समझ मेरी गलतियों को तुम अनदेखा कर देना ।।

Hindi Poem by Deepti Khanna : 111339180
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