Hindi Quote in Story by jaydev singh

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प्रेरणा
वो भी बारहवीं में थी लेकिन दूसरे कॉलेज में । उसकी गली से गुजरते हुए दिल की धड़कनें जब असामान्य होने लगीं तो यकीन हो गया कि इश्क की साजिश कामयाब हो रही है । वो भी कम न थी , अक्सर मुझे देख कुछ यूँ मुस्कुरा दिया करती कि मेरा अस्तित्व मेरे दिल में ही सिमटा हुआ नजर आता । अब तो बेमतलब भी उस गली से गुजरने लगा था , वो भी बालकनी में अब अक्सर ही नजर आने लगी थी , शायद बेमतलब ही ।
संवाद के लिए जुबान को तकलीफ न उसने दी थी न मैंने । ऑंखें बातें करती , दिल महसूस करता , दिमाग ने हड़ताल कर रखा था । एक दिन जलील दर्जी ने पूछ लिया - " क्या मियां ? कुछ गुम हो गया क्या इधर ?"
उसे पूछना चाहिए था - " कुछ मिल गया क्या इधर ?"
खैर ! उस दिन वो बालकनी में नजर नहीं आई । मैं निराश सा आगे बढ़ता रहा । दिल में शिकवा और शिकायत भी थी कि वो इस समय बालकनी में क्यों नहीं है ? वापस लौटा तो गली के मोड़ पर वो अकेली मिली । अब तक दूर से ही देखा था , आज चांद जमीन पर देख आँखें चुंधिया गई थीं , दिल का मामला था लेकिन दिल ने हाथ पांवों को विश्वास में नहीं लिया था शायद , कमबख्त काँपने लगे थे । सम्पूर्ण विश्व का गुरुत्वाकर्षण मुझे मेरे पैरों में महसूस होने लगा था , जमीन से हिल ही नहीं रहे थे । उसने हाथों के इशारे से पास बुलाया , किसी तरह आगे बढ़ा , नजदीक पहुँचने पर बोली - " काहें तंग किये हो हमको ?"
मैं बगलें झांक रहा था , वो मुझे घूर रही थी । कुछ नजदीक आकर अदा से मुस्कुराई - " कहीं गूंगे से तो इश्क न कर बैठी मैं ?"
मैं हड़बड़ाया - " नहीं नहीं मैं बोल लेता हूँ "
उसने बड़ी मुश्किल से हँसी रोकी - " इलाहाबाद विश्वविद्यालय का फॉर्म डाल दिये हैं हम "
-"वहाँ तो एंट्रेंस एक्जाम होता है ?"
-"नहीं निकाल पाओगे ?"
-"नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है "
-"तो फिर ये लो" .....कहते हुए उसने एक एडमिशन फॉर्म मेरी तरफ बढ़ा दिया ।
मैं खुश भी था कि वो चाहती है मैं उसके साथ , उसके कॉलेज में एडमिशन लूँ , डर भी लग रहा था कि ये एंट्रेंस निकाल पाउँगा या नहीं । उसने जाते हुए कहा - "अब गली में चक्कर लगाना छोड़ो , पढ़ाई करो , कॉलेज में एडमिशन हो इसके लिए पढ़ना पड़ेगा , क्या समझे ?"
मैं घर लौट आया । पढ़ाई के लिए ऐसा उत्साह आज तक बड़े पदों पर बैठे मेरे रिश्तेदार भी मेरे अंदर नहीं जगा सके थे । बहरहाल आज एडमिशन है , उसके और मेरे विषय एक हैं ।
"जय"

Hindi Story by jaydev singh : 111333285
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