इबादत तो बहोत की मगर वो मिला नहीं
जब मिला तो हमे तो अब मंजूर नहीं....
क्यो की एक समय होता है उसे पा ने का
फिर समय चला जाए तब उसकी कीमत
नहीं होती.....सुबह के इंतजार में वक़्त चला जाता है शाम के पास ....
फिर मिले या ना मिले उसकी अहेमीयत तो कब की खतम हो जाती है।।।।।