कविता ...
विषय ..संयुक्त परिवार ।
संयुक्त परिवार न जाने कहाँ खो गये ।
चारोंओर एकल परिवार छाते ही गये ।।
मान मर्यादा कहाँ इनकी खो गयी ।
सभ्यता ,संस्कार मानो लुप्त ही हो गये ।।
पहनावे इतने गजब के हो गये ।
स्त्री पुरुष का भेद करना मुश्किल हो गया ।।
बालों की स्टाईल गजब की ढा गयी ।
धोडे के बालों की नयी फैशन आ गयी ।।
समय मिलने का न जाने कहाँ गुम हो गया ।
बच्चे की देखरेख करने आया आ गयी ।।
साथ बैठे ,साथ खाये ,बरसों बीत गये ।
पैसे की लालच में एक दुजे से जुदा हो गये ।।
हंसी ,मजाक ,आपसी बातचीत कहाँ खो गयी ।
एकल परिवार अब तो बोझ बनते गये ।।
बृजमोहन एच .रणा ,कश्यप ,धंबोला ,हाल .अमदाबाद ,गुजरात ,सेवानिवृत्त वरिष्ठ अध्यापक ।।