हम आज़ाद होकर भी आज़ाद नहीं है , अपने ही बनाए हुए चक्रव्यूह में फंसे हुए है । क्या सही है क्या गलत कुछ समझ ही नहीं आता , बस एक भैड चाल में चल रहे है ना शुरु का पता ना ही अंत का । ऐसा नहीं है कि हम उस मैं से निकलना नहीं चाहते पर हम दुनिया के साथ चल रहे है । कभी कुछ अलग करने की सोची ही नहीं , भीड़ मैं अपना नाम करने की सोची नहीं । पर अब वक्त आ गया है , अपनी क्षमताओं को परखने का उनको इस्तेमाल करने का । जो अभी तक नहीं किया कुछ ऐसा कर गुजरने का ।