याद है ....
एक दिन मेरा हाथ थाम
तुमने पूछा था ...
नाखून नहीं बढ़ाती !!
शायद सोचा होगा ...
नेलपेंट तक नही लगाई
कितनी लापरवाह है ये अपने प्रति...
तो सुनो...हां हूं मैं लापरवाह ..
घर की जिम्मेदारी...
सबकी उम्मीदे पूरी करते करते
शायद हर औरत हो जाती है
लापरवाह अपने प्रति ...
इसलिए नही याद रहता
कभी नाखून पॉलिश करना
कभी बालों को रंगना
कभी अपने शौक पूरे करना
यहां तक के कभी कभी
अपनी पसंद का खाना तक बनाना ...
सबकी परवाह करते करते
बिठा दी जाती है वो एक दिन
लापरवाहों की श्रेणी में
फिर भी गर्व से कहती हूं
हां हूं मैं लापरवाह ...
जैसी हूं, वैसी ही रहती हूं सबके सामने
अब तुम सोच लो...
तुम्हें सादगी, सरलता पसंद है
या दिखावा .....
प्रिया