किसी दिन अचानक
वह आएगा और धीरे से
थपथपाएगा दरवाजा
वह नहीं चाहेगा कि माँ
उसे इस तरह आया देख
कहीं खुशी से हो जाए पागल
ऐसा भी हो सकता है
कि वह आए और चुपके से
घुस जाए अपने कमरे में
जैसा पहले भी कर चुका है
कई बार वह जब कहीं देर से लौटे तो
आहटों और दस्तकों से
चौंक कर झटके से दौड़ती है माँ
कई बार कोई आता है
कई बार महज धोखा ही होता है
माँ की आंखें नम ही रहती हैं
और चेहरा गमगीन, नाउम्मीद
हर दिन बेटे का कमरा करती है साफ
किताबों पर धूल जमने नहीं देती
माँ जानती है कि बेटे को
नहीं ढूंढ रहा कोई
लोग उसे भूल भी रहे हैं
लेकिन कैसे भूल सकती है माँ
और कैसे भूल सकता है पिता
(गुमशुदा नजीब की माँ)