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sakhi

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@komalrawat150190gmail.com112339


मैं नहीं डरती उस अंधेरे से
मैं रहती ही नहीं अंधेरे में
मैं हूँ नारी जिसने पुरुषो को
मान सम्मान और जन्म दिया
उन्हीं पुरुषो से भयभीत
नहीं निकलती अंधेरे में


बरसो से केवल सजा यौवन
ना किया किसी से आलिंग्न
जब मैं किशोरी से युवती हुई
दिखने लगे सबको निज स्वार्थ
एक पुरुष ने ऋण समझ
दूजे पुरुष से ब्याह दिया

कौन पिता है पति कौन
सब है तो केवल पुरुष
नारी सदा ही होती बोझ
एक दूसरे से करते मोल


मैं डरती हूँ उन पुरुषो से
जो आ जाते हैं अंधेरे में
मैं नहीं डरती अंधेरे से
मैं रहती ही नहीं अंधेर में

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