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अंगद - एक योद्धा। - Novels
by Utpal Tomar
in
Hindi Adventure Stories
~आरंभ~पतझड़ के दिन अभी अभी खत्म हुए थे, अब मौसम का सफर बसंत ऋतु की सुगंध सेमहकती हवाओं की रवानगी की और बढ़ रहा था | यह कहानी भी कई सौ साल पहले इन्हीं दिनों शुरू हुई थी | यह वह समय था जब सेनापति भानसिंह आर्य का लाडला बेटा अपने बचपन के आखिरी पडाव पर था | भानसिंह को सर्वाधिक प्रिय था अपना सबसे छोटा बेटा, अंगद | अभी बाल-अवस्था समाप्त भी नहीं हुई थी और अंगद के चेहरे पर अल्हड युवक सा तेज आ गया था |भान सिंह अपने पुत्रों के साथ अक्सर युद्ध-अभ्यास करते थे|
आरंभ पतझड़ के दिन अभी अभी खत्म हुए थे, अब मौसम का सफर बसंत ऋतु की सुगंध सेमहकती हवाओं की रवानगी की और बढ़ रहा था यह कहानी भी कई सौ साल पहले इन्हीं दिनों शुरू हुई ...Read More यह वह समय था जब सेनापति भानसिंह आर्य का लाडला बेटा अपने बचपन के आखिरी पडाव पर था भानसिंह को सर्वाधिक प्रिय था अपना सबसे छोटा बेटा, अंगद अभी बाल-अवस्था समाप्त भी नहीं हुई थी और अंगद के चेहरे पर अल्हड युवक सा तेज आ गया था भान सिंह अपने पुत्रों के साथ अक्सर युद्ध-अभ्यास करते थे अंगद अभी
मनपाल ने तुरंत आकाश की ओर देखा | वह एक निर्भीक योद्धा थे भय या चिंता तो उनके मुख पर कभी झलकती ही नहीं थी। आक्रमण की खबर सुनते ही उनकी आंखों में एक उज्जवल चमक आ गई, फौरन ...Read Moreकरने लगे। सबको एकत्र कर लिया सारी सेना एक झटके में प्रचंड मोर्चे में बदल गई और सीमा की और कूच किया। मनपाल अब वृद्धावस्था की ओर जाने लगे थे, परंतु उनके उद्घोष किसी भी जवान योद्धा की ललकार को मात दे सकते थे। उनकी एक आवाज पर सैनिक मार-काटने और मर- कटने को आतुर हो जाते थे। शत्रु
मनपाल के मन मे अंगद के प्रति दया नहीं थी, बल्कि उसकी मूर्खता पर वह क्रोधित थे। उन्होंने अपना ध्यान अंगद पर से हटाकर युद्ध पर केंद्रित किया, और रणनीति के अनुसार शत्रु का सामना करने लगे। दोनों ओर ...Read Moreसिपाही अपनी पूरी ताकत से भिड़ रहे थे। मनपाल शत्रु की रणनीति समझने की कोशिश कर रहे थे, उन्होंने देखा कि वज्रपाल अपनी सेना के अग्रभाग को फैला रहा है, उसकी मंशा साफ ज़ाहिर थी कि वह मनपाल सिंह की सेना को चारों ओर से घेरना चाहता था। तभी मनपाल को हवा में एक शीश उडता हुआ दिखाई दिया, ध्यान
अगले दिन प्रातः काल मनपाल सिंह को अंगद मंदिर की ओर से आता हुआ दिखाई दिया। साफ स्वच्छ वस्त्र धारण किए हुए, केश सुलझे व चेहरे पर लालिमा, उसे देख लगता ही न था कि कल ही उसने कोई ...Read Moreलड़ा है। वह ऐसे चला आता था मानो कोई मदमस्त जवान शेर कई दिनों के आराम के बाद अपनी मांद से बाहर आया हो और जंगल की सैर करने निकला हो।अंगद के मन में एक अलग स्तर का आनंद था, जिसके पास से वह निकलता सबका हाल जान कर निकलता।जो सामने आता उसको वह मुस्कान भरी नजरों से देखता, मानो
अंगद ने मनपाल से पुनः पूछा, कि महाराज और उसके पिता नगर वापस कब लौटेंगे, तो मनपाल ने बड़ी दबी सी आवाज में बताया, जैसे उनकी अब उस वार्तालाप में कोई रुचि शेष न रह गई हो। वह बोले, ...Read Moreसे चौथे दिन महाराज और तुम्हारे पिता दोनों लौट आएंगे। और कोई प्रश्न, कोई जानकारी लेनी हो, तो कहो- वह भी बताऊं तुम्हें।" अंगद मनपाल का व्यवहार देखकर भांप गया था कि उनके मन में क्या चल रहा है। वह धीमे से स्वर में बोला, "आप तो काका बिना किसी कारण ही रुष्ट हुए जाते हो, मुझसे कोई त्रुटि हुई