कॉलज की वो सुबह हमेशा की तरह चहल-पहल भरी थी।
दिल्ली यूनिवर्सिटी का कैंपस,
जहाँ हर कोने में या तो प्यार खिलता था, या अहंकार टकराता था।
और उसी टकराव में पहली बार मिले —
कियारा और विराट।
कियारा — एक शांत, समझदार, और आत्मविश्वासी लड़की,
जो अपने पिता की एकमात्र संतान थी।
मां का साया बचपन में ही खो दिया था,
और अब ज़िंदगी बस पढ़ाई और करियर का नाम थी।
वहीं विराट — रईस बाप का बेटा,
जुबान पर अकड़ और आँखों में चुनौती।
उसकी पहचान थी “जिससे पंगा लिया, उसने पछताया।”
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एक दिन कॉलेज की डिबेट कॉम्पिटिशन में
दोनों आमने-सामने आए।
विषय था — “प्यार अब एक समझौता है या एहसास?”
कियारा ने कहा —
> “प्यार कोई व्यापार नहीं,
ये दो सच्चे दिलों के बीच की इबादत है।”
विराट ने मुस्कराते हुए जवाब दिया —
> “इबादत? प्यार तो सबसे बड़ा सौदा है,
जहाँ दिल से ज़्यादा दिमाग चलता है।”
ताली बज उठी, लेकिन कियारा की आँखों में गुस्सा तैर गया।
वो बोली —
> “तुम जैसे लोग ही प्यार को गंदा नाम देते हैं।”
विराट हँस पड़ा —
> “और तुम जैसी लड़कियाँ ही उसे फिल्मी बना देती हैं।”
वो पल था जब नफरत ने जन्म लिया।
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टकराव
दिन बीतते गए, पर हर जगह टकराव बना रहा।
क्लास में, प्रोजेक्ट्स में, यहाँ तक कि कॉलेज फेस्ट में भी दोनों एक-दूसरे के खिलाफ़।
पर अजीब बात ये थी —
हर बार जब नफरत बढ़ती,
दिल में कहीं एक अजीब-सी खलिश भी बढ़ती।
एक दिन कॉलेज ट्रिप पर दोनों को एक ही ग्रुप में भेजा गया।
विराट को गुस्सा आया —
> “मुझे किसी टीचर ने सज़ा दी है क्या?”
कियारा ने पलटकर कहा —
“हाँ, भगवान ने।”
बाकी सब हँस पड़े।
पर उस रात, जब बारिश हुई और पहाड़ों पर रास्ता बंद हो गया,
वो दोनों एक ही शेड के नीचे फँस गए।
कियारा ठंडी हवा में काँप रही थी।
विराट ने अपनी जैकेट बढ़ाई।
> “मत समझो कि मैं हीरो हूँ, बस इंसान हूँ।”
कियारा ने झटके से कहा —
“मुझे तुम्हारी दया नहीं चाहिए।”
पर जब बिजली कड़की,
उसका हाथ अपने आप विराट के हाथ पर जा टिका।
और दोनों कुछ पल तक बस एक-दूसरे को देखते रहे।
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भावनाओं की हलचल
ट्रिप से लौटने के बाद सब बदल गया।
अब नफरत में भी चाहत घुल चुकी थी।
वो अब भी झगड़ते थे,
पर अब हर झगड़ा कुछ अधूरी बात छोड़ जाता।
विराट को पहली बार लगा —
> “कियारा को नफरत से नहीं,
खुद से बचा रहा हूँ।”
पर कियारा के अंदर अब भी दीवार थी।
वो सोचती थी —
> “जिस इंसान को मैं नफरत कहती थी,
वो अब मेरे दिल में क्यों उतर रहा है?”
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अहंकार की कीमत
कॉलेज के आख़िरी साल में
कियारा को एक इंटरनेशनल प्रोजेक्ट मिला।
विराट ने उसे बधाई देने की कोशिश की,
पर उसने कहा —
> “मुझे दिखावे वाले लोगों की बधाई नहीं चाहिए।”
वो शब्द तीर बनकर विराट के दिल में उतर गए।
उसने उसी दिन कसम खाई —
> “अब उसे दिखाऊँगा कि नफरत भी प्यार से ज़्यादा ताकतवर होती है।”
उसने बिजनेस में कदम रखा,
और कुछ ही सालों में एक नाम बना लिया।
जबकि कियारा विदेश से लौटकर अपने करियर में उलझी रही।
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पुनर्मिलन
पाँच साल बाद,
एक कॉन्फ्रेंस में दोनों की फिर मुलाकात हुई।
विराट अब “Viraat Enterprises” का मालिक था,
और कियारा — उसी इवेंट की हेड।
वो जब स्टेज पर पहुँची,
विराट ने ठंडी मुस्कान के साथ कहा —
> “मिलकर अच्छा लगा, मिस परफेक्ट।”
कियारा ने पलटकर कहा —
“अब भी वैसे ही अकड़ है तुममें।”
विराट बोला —
> “अकड़ नहीं, बस दर्द है…
किसी ने सिखाया था कि दिल की बात कभी मत कहो।”
कियारा चुप हो गई।
वो अहंकार जो सालों से दोनों के बीच था,
अब सिर्फ़ एक बहाना बन चुका था।
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नफरत के नीचे छिपा प्यार
कियारा को उस शाम कॉन्फ़्रेंस में विराट से मिलना एक झटका लगा था।
वो अब वही पुराना लड़का नहीं था —
उसकी चाल में आत्मविश्वास था, बातों में गहराई और आँखों में… ठंडा सन्नाटा।
वो वही विराट था,
पर अब उसकी मुस्कान में चोटें थीं।
कॉन्फ़्रेंस के बाद जब सब लोग जा चुके थे,
कियारा अकेली कॉफ़ी मशीन के पास खड़ी थी।
तभी पीछे से आवाज़ आई —
> “अब भी ब्लैक कॉफ़ी, बिना शुगर?”
कियारा मुड़ी —
विराट हँस रहा था।
पर उस हँसी में वो पुरानी तुनक नहीं थी, बस यादों की चुभन थी।
> “तुम्हें याद है?”
कियारा ने पूछा।
“कुछ बातें भूलने लायक नहीं होतीं।”
विराट बोला, और उसकी नज़रें एक पल को रुक गईं —
जैसे कोई बीती बात अभी भी वहीं अटकी हो।
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अनकही बातें
दोनों कुछ देर तक खामोश रहे।
फिर विराट ने धीमे स्वर में कहा —
> “तुमने उस दिन कहा था कि मैं दिखावा करता हूँ…
शायद सही कहा था।”
कियारा ने पलटकर देखा —
> “अब तुम क्या साबित करना चाहते हो?”
“कुछ नहीं… बस ये कि नफरत से भागते-भागते
प्यार से भी दूर हो गया था।”
वो शब्द सीधे कियारा के दिल पर गिरे।
उसने कुछ नहीं कहा, बस धीरे से कॉफ़ी का कप रखा और चली गई।
पर उस रात…
वो नींद में भी विराट की आँखें देखती रही।
वो नफरत, जो कभी उसका बचाव थी,
अब खुद उसे घेरने लगी थी।
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प्यार की आहट
अगले कुछ दिनों तक दोनों बार-बार आमने-सामने आते रहे।
मीटिंग्स, इवेंट्स, चर्चाएँ — हर जगह टकराव,
पर अब टकराव में तंज नहीं,
एक अजीब-सी खींच थी।
विराट कभी उसकी बातों पर हँस देता,
कभी बस चुपचाप उसे देखता।
एक दिन मीटिंग के बाद उसने कहा —
> “तुम्हें देखकर अब भी दिल में वही हलचल होती है।”
कियारा ने झुंझलाकर कहा —
“वो सिर्फ़ पुरानी नफरत है, और कुछ नहीं।”
विराट ने मुस्कुराकर जवाब दिया —
> “अगर नफरत होती, तो हर बार तुम्हें देखकर साँस क्यों अटक जाती?”
कियारा के पास कोई जवाब नहीं था।
उसने बस नज़रें फेर लीं।
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दिल का तूफान
एक रात कंपनी का फंडरेज़र था।
कियारा ने लाल साड़ी पहनी थी —
सधी हुई, पर शालीन।
विराट की नज़रें जब उस पर पड़ीं,
तो वक़्त कुछ पल को थम गया।
डांस के लिए जब उसका नाम पुकारा गया,
तो विराट ने आगे बढ़कर हाथ बढ़ाया —
> “एक बार मौका दो, इस बार कदम नहीं दिल मिलाने का।”
कियारा ने एक पल को हिचकिचाकर उसका हाथ थामा।
संगीत शुरू हुआ।
चारों ओर रोशनी थी,
पर उनके बीच सिर्फ़ खामोश एहसास था।
वो पल…
जहाँ नफरत घुलकर सिर्फ़ धड़कनें रह गईं।
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डांस खत्म हुआ, पर कियारा की आँखें नम थीं।
विराट ने धीमे से कहा —
> “तूफान कितना भी बड़ा हो,
आखिर में बारिश वही लाती है, जो दिल को सुकून देती है।”
कियारा ने पलटकर कहा —
> “और तूफान से लड़ना हमेशा जरूरी नहीं होता…”
“कभी-कभी बस उसे महसूस करना होता है।”
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उस रात दोनों अपने-अपने कमरों में थे,
पर एक-दूसरे की यादें नींद से ज़्यादा करीब थीं।
वो अब भी खुद से कह रही थी —
> “नफरत खत्म नहीं हुई…”
पर दिल कह रहा था —
“शायद अब नफरत का नाम बदल गया है।”
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अतीत का बदला या अधूरा प्यार
सुबह की ठंडी हवा खिड़की से अंदर आ रही थी।
कियारा कॉफी मग हाथ में लिए बालकनी में खड़ी थी —
लेकिन मन किसी और जगह था।
हर घड़ी, हर धड़कन में विराट की बातें गूँज रही थीं।
वो खुद से सवाल कर रही थी —
> “क्या मैं वाकई उसे अब भी नफ़रत करती हूँ?
या फिर वो नफरत बस एक ढाल थी मेरे जख्मों की?”
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अतीत की परतें
उस शाम ऑफिस में मीटिंग थी।
विराट और कियारा दोनों वहाँ मौजूद थे,
पर आज के माहौल में कुछ अलग था।
कियारा के चेहरे पर ठंडापन था,
और विराट की नज़रों में बेचैनी।
मीटिंग खत्म होते ही
कियारा तेज़ कदमों से निकलने लगी।
विराट पीछे आया —
> “कियारा, बात तो सुनो।”
कियारा रुकी, पलटी और बोली —
> “क्या सुनूँ मैं? वही पुराने झूठ?”
“झूठ?” विराट हैरान था।
“कौन सा झूठ?”
कियारा की आँखें नम हो गईं।
> “जिस दिन तुमने मुझे बर्बाद होते देखा था,
उस दिन तुमने मेरी मदद नहीं की… बल्कि तुम ही कारण थे।”
विराट के कदम रुक गए।
> “मैंने क्या किया था?”
कियारा बोली —
> “पाँच साल पहले… जिस प्रोजेक्ट से मुझे बाहर किया गया था,
वो तुम्हारे पिता की कंपनी ने लिया था।
और मैंने उस दिन तय किया था…
कि मैं कभी किसी विराट से नहीं जुड़ूँगी।”
वातावरण में सन्नाटा छा गया।
विराट ने गहरी सांस ली —
> “कियारा… उस प्रोजेक्ट को रद्द करने का फैसला मेरे पिता ने किया था।
और उस वक्त मैं कुछ भी नहीं कर सका।”
> “तो तुमने कोशिश भी नहीं की,”
कियारा ने तड़पते हुए कहा।
“तुम्हारे लिए वो बस एक बिजनेस डील थी,
पर मेरे लिए मेरा सपना था!”
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सच्चाई का तूफान
विराट ने शांत स्वर में कहा —
> “हाँ, मैं नहीं रोक सका। लेकिन मैंने उसी दिन कसम खाई थी
कि मैं एक दिन खुद की पहचान बनाऊँगा — ताकि किसी का सपना यूँ न टूटे।”
> “और आज जब तुम सामने हो… मैं बस चाहता हूँ
कि तुम ये न सोचो कि मैंने कभी तुम्हें दर्द देना चाहा था।”
कियारा की आँखों से आँसू बहने लगे।
> “तो अब क्या चाहते हो?”
> “सिर्फ़ एक मौका…
तुम्हारी नफरत में छिपे उस प्यार को सच करने का।”
कियारा चुप रही।
वो चाहती थी कि उस पर चिल्लाए, उसे दूर धकेले,
पर दिल कह रहा था — वो झूठ नहीं बोल रहा।
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दर्द और दरारें
रात को कियारा अपने कमरे में रोती रही।
बचपन से अब तक उसने खुद को मज़बूत बनाया था,
पर आज वो बिखर रही थी।
वो समझ नहीं पा रही थी कि नफरत करे या उसे माफ़ कर दे।
डायरी के पन्ने पर उसने लिखा —
> “वो आया तो था जैसे एक तूफान…
पर शायद अब वही मेरा सुकून है।”
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अगली सुबह
विराट ने एक मेल भेजा —
> “मुझे तुम्हारे साथ एक प्रोजेक्ट शुरू करना है।
नाम: ‘द न्यू होप’।
अगर तुम मानो, तो ये हमारी नई शुरुआत हो सकती है।”
कियारा ने मेल खोला, और होंठों पर हल्की मुस्कान आई।
वो जानती थी —
यह बिज़नेस नहीं, दिल का प्रस्ताव था।
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नफ़रत से मोहब्बत तक
कियारा सुबह देर तक जागती रही थी।
नींद नहीं थी, बस बेचैनी थी —
वो मेल बार-बार खोलकर पढ़ती रही।
हर शब्द में विराट की ईमानदारी झलक रही थी।
> “द न्यू होप”…
शायद सच में, अब वक्त था एक नई उम्मीद का।
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नई शुरुआत
तीन दिन बाद उन्होंने साथ काम शुरू किया।
विराट की कंपनी और कियारा की फर्म,
दोनों मिलकर एक सामाजिक प्रोजेक्ट बना रहे थे —
जिसका मकसद था गरीब बच्चों को शिक्षा दिलाना।
वो अब रोज़ एक-दूसरे से मिलते,
बात करते,
कभी हँसते,
कभी चुप रहते —
लेकिन अब उस चुप्पी में नफरत नहीं,
बस संवेदनाएँ थीं।
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दिल की भाषा
एक दिन जब दोनों स्कूल के बच्चों से मिलने गए,
वहाँ एक छोटी सी लड़की ने पूछा —
> “दीदी, ये अंकल आपके पति हैं क्या?”
कियारा चौंकी।
विराट मुस्कराया —
> “अभी नहीं, पर उम्मीद है कि एक दिन होंगे।”
बच्चे खिलखिलाकर हँस पड़े।
कियारा ने गुस्से में कहा —
> “तुम हर जगह मज़ाक करते रहते हो।”
विराट बोला —
“दिल की बात मज़ाक नहीं होती।”
उसके इस जवाब पर कियारा का चेहरा लाल हो गया।
उसने कुछ नहीं कहा —
पर उस पल उसका दिल ज़रूर मुस्करा उठा।
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क़रीबियाँ
शाम को दोनों ऑफिस लौटते समय
बारिश शुरू हो गई।
कियारा ने कहा —
> “कितनी बार कहा है, कार में छाता रखो।”
विराट ने हँसते हुए जवाब दिया —
“छाते से क्या होगा, तूफान को कौन रोक सकता है?”
और अगले ही पल,
बारिश की बूँदें उन पर बरसने लगीं।
कियारा दौड़कर पेड़ के नीचे पहुँची,
विराट उसके पीछे।
वो दोनों हँस रहे थे,
भिगते हुए, जैसे पुरानी यादें धुल रही हों।
विराट ने धीरे से कहा —
> “याद है, जब पहली बार बारिश में तुम मुझसे नाराज़ हुई थीं?”
“और आज?”
कियारा ने पूछा।
“आज बस चाहता हूँ… ये पल कभी ख़त्म न हो।”
वो बोलते-बोलते रुक गया।
कियारा ने उसकी आँखों में देखा —
इस बार नफरत की कोई परत नहीं थी।
बस प्यार… सच्चा, गहरा, निःस्वार्थ प्यार।
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इज़हार
बारिश थमने के बाद, दोनों ऑफिस के बाहर खड़े थे।
विराट ने कहा —
> “कियारा, मैं अब कुछ छिपाना नहीं चाहता।”
> “तुम्हें देखकर मुझे अब डर नहीं लगता,
बस सुकून मिलता है।
मैं तुमसे नफरत नहीं कर सका…
क्योंकि शायद, मैंने तुम्हें हमेशा प्यार ही किया।”
कियारा की आँखें भर आईं।
वो कुछ पल तक उसे देखती रही,
फिर धीमे स्वर में बोली —
> “तुम्हारी नफरत में ही मुझे प्यार मिला, विराट।”
> “मैंने सोचा था कि तुमसे दूर रहकर खुद को बचा लूँगी…
लेकिन अब लगता है — तुमसे दूर रहना ही मेरी सबसे बड़ी सज़ा थी।”
वो बोलते-बोलते रो पड़ी।
विराट ने उसका हाथ थामा,
और पहली बार —
उनकी नफ़रत का अंत,
मोहब्बत के एक आँसू से हुआ।
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एक नई सुबह
कुछ महीनों बाद,
“द न्यू होप” प्रोजेक्ट पूरे देश में मशहूर हुआ।
कियारा और विराट अब एक जोड़ी बन चुके थे —
सिर्फ़ बिज़नेस की नहीं, दिल की भी।
वो दोनों बच्चों के स्कूल में गए,
जहाँ उसी छोटी लड़की ने दौड़कर पूछा —
> “अब तो शादी हो गई ना?”
विराट ने मुस्कराते हुए कहा —
> “अब कोई उम्मीद नहीं, अब हक़ है।”
कियारा हँसते हुए बोली —
“हाँ, अब तूफान नहीं — सुकून है।”
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“तूफान सा प्यार” — नफ़रत से मोहब्बत तक की एक अधूरी नहीं, बल्कि अमर कहानी।
> कभी-कभी नफ़रत सिर्फ़ प्यार का दूसरा नाम होती है…
बस उसे महसूस करने के लिए दिल चाहिए, दिमाग़ नहीं।
-By Tanya Singh