पार्टी अपने चरम पर थी। कुछ लोग ड्रिंक्स में बिज़ी थे, कुछ बिज़नेस की बातें कर रहे थे, और कुछ डांस फ्लोर पर थिरक रहे थे।
तभी अचानक... माइक उठाते हुए विवान बोला:
विवान (माइक पर) –
“May I have your attention please.”
सभी ठिठक गए।
जो जहाँ था, वहीं रुक कर उसकी ओर देखने लगा।
विवान की नज़रें हल्की सी मुस्कान के साथ भीड़ में खड़ी एक लड़की पर जा टिकीं — आरोही, जो उलझन और उम्मीद के बीच उसे देख रही थी।
विवान (धीरे, मगर साफ़ लहजे में) –
“आरोही... एक बात है जो मैं बहुत वक़्त से तुझसे कहना चाहता हूँ।”
आरोही की धड़कनें तेज़ हो गईं।
उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान उभरी।
विवान (भीड़ के बीच, उसे देखते हुए) –
“बीते कुछ महीनों से… सिर्फ तुम्हारे ही ख्याल मेरे दिमाग में घूमते रहे हैं।
तुम्हारा हँसना, तुम्हारी बातें, तुम्हारी चमकती आँखें…
सब कुछ।”
अब पार्टी में थोड़ी फुसफुसाहट शुरू हो चुकी थी। सबकी नज़रें आरोही पर थीं।
विवान ने एक घुटन भरी साँस लेते हुए सवाल किया:
विवान:
“Will you marry me, Aarohi?”
कट टू – एक चेहरा… दूर बैठे एक शख़्स की निगाहें लाल थीं। साँसें तेज़ चल रही थीं।
वो था… वीर मल्होत्रा।
उसकी आँखों में सिर्फ एक आग थी — काबू से बाहर।
उसने नज़रें हटाईं, सीधे आरोही की ओर देखा।
आरोही थोड़ी कांप गई।
वीर ने धीमे से गर्दन हिलाई — ना में।
जैसे रोक रहा हो… जैसे सब कुछ तोड़ देने वाला हो।
मगर आरोही ने गहरी साँस ली, और फिर विवान की ओर देखा —
जो उसके जवाब का इंतज़ार कर रहा था।
आरोही (धीरे, मगर ठोस आवाज़ में):
“हाँ… विवेक, I’ll marry you.”
विवान ने खुशी में बिना देरी उसे बाँहों में भर लिया।
कमरे में तालियाँ गूंजने लगीं...
या शायद ये सिर्फ वीर का वहम था।
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कमरा अंधेरे में डूबा था।
खिड़कियाँ बंद, पर्दे झूलते हुए…
वही वीर व्हीलचेयर पर बैठा था, खिड़की के पास। हाथ में सिगरेट सुलग रही थी।
टेबल पर शराब की कई बोतलें पड़ी थीं — कुछ खाली, कुछ टूटी हुई।
माहौल एक दम खामोश, मगर अंदर एक तूफान।
उसकी आँखों के सामने वही पल बार-बार घूम रहा था —
"हाँ... विवान, I’ll marry you."
गुस्से में उसने शराब का गिलास उठाया, पूरा खाली किया…
मगर गुस्सा कम नहीं हुआ।
वीर चीख पड़ा–
“आ-आ-आआअअर्ह्हह——!”
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तभी दरवाज़ा ज़ोर से खुला।
आरोही सामने खड़ी थी।
साँसें तेज़, आँखों में डर और हिम्मत दोनों।
उसने कमरे की बत्तियाँ जलाईं।
बिखरी बोतलें, धुएँ से भरा कमरा, और वीर की खाली निगाहें — सब देखकर वो कुछ देर ठिठकी।
वो धीमे-धीमे उसके पास पहुँची।
कंधों पर हाथ रखते हुए बोली:
“वीर…”
वीर उसे देखकर हल्का सा मुस्कुराया — शराब के नशे में डूबा चेहरा… मगर आँखों में वही पुरानी जंग।
आरोही ने कड़ी आवाज़ में कहा–
“मैंने तुमसे कहा था, इसे कभी हाथ नहीं लगाओगे।”
वीर की आवाज़ भर्राई हुई थी —
“तुम्हें क्यों फ़र्क पड़ता है?”
“क्योंकि ये तुम्हारी सेहत के लिए ठीक नहीं…”
वीर ने अचानक व्हीलचेयर घुमा दी, उसका हाथ पकड़ा और झटके से खींचकर उसे अपनी गोद में गिरा लिया।
“Don’t move.”
आरोही ने कोशिश की उठने की… मगर जितना वो छूटने की कोशिश करती, वीर की पकड़ उतनी मजबूत होती जाती।
हार कर वो चुप हो गई।
वीर ने गुस्से और दर्द में टूटी आवाज़ के साथ कहा–
“क्यों...? क्यों कर रही हो ऐसा तुम?”
आरोही के पास कुछ नहीं था कहने को, उसने गहराई से वीर की आंखों में देखा