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झंझावातों में उलझे-उलझे दस-ग्यारह बज गए और बच्चा सो गया, तब बेमन से थोड़ा बहुत खाया। फिर शीतल से बात करने और ग्रुप देखने फोन खोला तो, रेश्मा का मिस्ड कॉल मिला। वह सनाका खा गई। तुरंत कॉल बैक किया मगर स्विच्ड ऑफ मिला। पेट में जाड़ा भर उठा। जी को लाख समझाया कि यों ही फोन किया होगा। और अब सो रही होगी। होस्टल में रात को फोन बंद करा देते हैं! पर धीरज न बँधा...। उसने शीतल को फोन लगा दिया। पर फोन उठाते ही उसने पूछा, हमारा मैसेज फाॅरवर्ड कर दिया आपने?
नहीं, मैसेज तो अभी नहीं भेज पाए, पर एक और समस्या हो गई है!
क्या?
हो सकता है, कुछ भी न हुआ हो, पर घबराहट हो रही है!
किस चीज की?
भरत का फोन आया तो हमने फोन बंद कर लिया था, अभी खोला तो रुक्कू का मिस्ड कॉल मिला। कॉल बैक कर रहे हैं, मगर उठ नहीं रहा...
उससे कैसी बातचीत हुई थी, बताओ तब अंदाजा लगे... वैसे ये कोई बात नहीं है, बेटी ने हाल-चाल कहने, जानने फोन किया होगा! साढ़े ग्यारह बज रहे हैं, अब सो रही होगी, चिंता न करो, सुबह ट्राई करना।
उसे थोड़ी तसल्ली हुई, बोली, ईश्वर करे, यही बात हो! वैसे उनसे कोई तल्ख बात तो नहीं हुई, कह कर उसने पूरा विवरण दे दिया। तब उसने अपनी राय दी कि- एक बात बताएँ, वह आसानी से पीछा न छोड़ेगा।
क्यों!
तुम समझ सकती हो, उसने बात को जमा कर कहा, भूखा शेर हाथ से निकले शिकार को आसानी से नहीं छोड़ता।
फिर... वह काँप गई।
उस जंगल में रहते वह पीछा करता ही रहेगा। वह निर्णायक लहजे में बोला।
क्या करें, कहीं और ट्रान्सफर ले लें!
कहाँ मुम्बई, और कहाँ हो सकता है?
मुम्बई तो हेड ऑफिस है, यूनिट नहीं तो होगा नहीं, हमारा काम तो वुमेन वेलफेयर से सम्बंधित है, जयपुर हो सकता है और गुजरात।
गुजरात में कहाँ?
कोडीनार, जूनागढ़ डिस्ट्रिक में!
इतनी जल्दी हो जाएगा!
छह महीना तो लग जाएगा, कम से कम!
सुन कर वह हँसा, हँ-हँ...इधर एक-एक दिन भारी पड़ रहा है!
क्या बताएँ, साहेब! रात कट जाती है तो दिन नहीं और दिन कट जाता है तो रात नहीं कटती! इतना तनाव कि कभी-कभी तो सर के टुकड़े होने लगते हैं! रोते-रोते आँखें सूज जाती हैं।
सचमुच, क्या किस्मत पाई है तुमने भी, वो गाना याद आता है:
चैन से हमको कभी आपने जीने ना दिया, जहर भी चाहा अगर पीना तो पीने ना दिया...
हमारी स्टोरी लिखना, साहेब! बड़ी दर्द भरी दास्तान है-ये!
लिखेंगे, अवश्य!
.......
सो जाओ, अब!
क्या करें, नींद नहीं आती!
तो यहाँ आ जाओ, हमारे पास, लोरी गाकर सुला देंगे!
ऐसी किस्मत कहाँ... उसने निश्वास छोड़ा।
किस्मत तो बनाने से बनती है, साहिबा!
बन गई, अब तो बच्चों की बनाएँगे।
ठीक है, फिर सो जाओ!
कैसे, नींद आए तब ना!
युक्ति बताएँ, करोगी!
जी!
अपने लिप्स भेज दो...
फिर वही बात...! उसने फोन काट दिया। मगर लेट गई और नींद नहीं आई और शीतल का चेहरा नजदीक आ गया तो उसने अपने ओठ बढ़ा दिए और महसूस किया कि वे उसके ओठों से जुड़ गए। इसी तसव्वुर में बेहोशी छाने लगी। नींद आ गई। मगर सुबह इसी चिंता में जल्दी खुल गई कि रेश्मा से बात करना है! आँख मलते उसने फोन लगाया, घंटी जाने लगी। तसल्ली होने लगी। मगर उठा नहीं तो फिर हल्की निराशा ने घेर लिया। सोचा, फ्रेश हो रही होगी। वह हर्ष को उठाने लगी, उठो भैया! उठो ना! क्यों इतने पागल होके खेलते हो कि एक करवट में रात कट जाती है... पढ़ाई तो करना नहीं, खेल से ही जिंदगी पार लगाओगे!
बेतरह झकझोरने से उसकी नींद टूट गई थी, आँख मीड़ता हुआ बोला, माँ हमने सपने में देखा कि खूब बड़े स्टेडियम में डे-नाइट मैच चल रहा है और हम, हम हैं ना पैड बाँधे पवेलियन में बैठे हैं!
अच्छा, उसने प्यार से पुचकारा, फिर क्या हुआ!
फिर...फिर तो पता नहीं, आपने जगा दिया... कह कर उसने आरती के पेट में एक मुक्का मार दिया।
बदमाश! उसे हँसी आ गई। पहले से अधिक लाड़ करने लगी। और वह आँचल में छुप कर फिर सोने की कोशिश करने लगा तो पीठ पर धौल जमाती बोली, जाओ, चलो बाथरूम जाओ, अब नहीं!
दो मिनिट और सोने दो ना माँ... उसने आँख बंद करते कहा।
नहीं, अब नहीं, एक सेकेण्ड नहीं, देर हो जाएगी। गाड़ी आने से पहले पीठ पे बस्ता लाद, बाहर खड़े हो जाया करो, समझे!
हर्ष को उठना पड़ा।
रेश्मा को वह बराबर ट्राई कर रही थी। पहले घंटी नहीं उठ रही थी और अब बिजी जा रहा था। हर्ष निकल आया तो वह भी फ्रेश होने चली गई। एक ही चिंता दिमाग को खाए जा रही थी कि रेश्मा का क्या हुआ। आशंका से मन थर-थर काँप रहा था। जबकि वह अपने मन को बराबर समझा रही थी कि सुबह का समय है, क्लास हो या स्पेशल पीरिएड...री-कोर्स कराया जा रहा हो! पर मन था कि धीर नहीं धर नहीं रहा था।
लेकिन हर्ष को विदा करने के बाद उसने फिर फोन मिलाया तो मिल गया।
कैसी हो, रात को कॉल किया था...
हाँ- माँ!
हमने कॉल बैक किया, तुम सो गई थीं!
हाँ-माँ!
फिर सुबह क्यूँ नहीं उठाया?
सो रहे होंगे!
अच्छा, फोन खोल कर दुबारा सो गईं!
तो वाशरूम गए होंगे, माँ! तुम इतनी परेशान क्यों हो जाती हो...? लगा वह खीजी!
चिंता की तो बात है-बेटा, उसने कहना चाहा पर कहा नहीं। फिर बोली, उसके बाद बिजी बोल रहा था, सो-क्यों?
सुन कर रेश्मा को डर लगा कि कहीं पोल न खुल जाए! क्योंकि- रात में तो स्विच्ड ऑफ करना पड़ता है, इसलिए अब वह सुबह जल्दी जाग कर बात करने लगी है! उसने बात बना दी, वो माँ उल्टे सीधे कॉल आते हैं तो साइलेंट मोड में डाल लेते हैं!
पापा की कॉल तो नहीं आई? उसने ऐहतियातन पूछा।
अब रेश्मा को पक्का यकीन हो गया कि पोल खुल चुकी है! स्वभावतः चालाक तो न थी, पर परिस्थितियाँ बना देती हैं। उसने घबराए से स्वर में कहा, सेटरडे को पापा हमें ले गए थे।
कहाँ, फ्लैट पर! उसकी आशंका सच निकली।
रेश्मा ने कहा, हाँ!
कुछ बोल रहे थे! घबराहट बढ़ गई।
रेश्मा समझ गई कि पापा ने माँ को सब बता दिया। वह बोली नहीं। आरती ने फिर पूछा, क्या बोल रहे थे?
मन का चोर दबा वह कठिनाई से बोली, हमें छू रहे थे, और फफकने लगी।
आरती को लगा कि पाँव तले जमीन नहीं रही। गश खाकर वह किचेन में ही बैठ गई। रास्ता सूझ नहीं रहा था। फिर हिम्मत जोड़ी और उठी और कपड़े बदले और ताला डाल, चाबी मकान मालिकिन को दे, रायपुर की बस में जा बैठी।
माँ को अचानक आया देख रेश्मा की तो सिट्टी-पिट्टी गुम गई। लगा अपनी चालाकी में ही फँस गई। इसी डर से वह रोने लगी। आरती ने बहुत पूछा, मगर कुछ बोली नहीं तो वह वार्डन को ऐप्लीकेशन देकर उसे बलौदा बाजार लिवा लाई।
इस सब में शाम हो गई। माँ-बेटी दोनों भूखी थीं। हर्ष का दोपहर का खाना भी पच गया था।
गुमसुम खाना बनाया, जैसे-तैसे खाया, फिर पूछा, कहाँ-कहाँ छुआ? भरत के लिए मन ही मन गालियाँ निकल रही थीं, आदमी की जात कुत्ते की...पेट भरा हो, चाहे खाली, इधर-उधर मुँह मारने से बाज नहीं आता! नीलिमा की हिदायत याद आ रही थी, बच्ची कल के लिए जवान होगी और आजकल तो सगे बाप का भरोसा नहीं, ये तो सौतेला है!
रेश्मा अपने बचाव में गढ़े हुए झूठ को सच बनाने पर तुल गई। उसने कमर और सीने पर हाथ लगा सहमते हुए बताया, यहाँ...यहाँ!
भेजा भन्ना गया। क्रोध में अब कुछ सूझ नहीं रहा था। दोस्त को फोन लगा दिया।
बता दिया, ऐसा-ऐसा किया।
घबराओ नहीं, मैं किसी वकील से सलाह लेता हूँ, उसने आश्वासन दिया।
वकील से क्यों,
रिपोर्ट करने,
अरे- नहीं, बात फैलाओ नहीं! उसने काँपते स्वर में कहा।
फिर? उस पर रोक लगाने का और कोई उपाय है तुम्हारे पास?
नहीं, हाँ!
क्या है, कुछ नहीं, वो मैसेज तक तो भेजा नहीं, इतनी डरपोक क्यों हो, ऐसे डर-डर कर कब तक जियोगी?
मैसेज आज भेज देंगे!
भेज दो, देखना इतने से ही हिम्मत पस्त हो जाएगी, उसकी!
भेज देंगे! उसने वादा किया।
अभी भेज दो...
भेजते हैं,
भेजो!
दबाव इतना बढ़ गया कि उसने मैसेज रेश्मा को दिखला दिया। पढ़ कर वह अवाक् माँ को देखने लगी कि यह क्या हो गया! तो आरती बेटी को पकड़ और उससे चिपक कर रोने लगी, ओऽमाँ, हमने अपनी किस्मत फोड़ ली! दो-दो बार फोड़ ली...राम... हिचकियाँ बँध गईं।
रेश्मा को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहे! बस, इतना ही समझ आया कि वे अब पापा नहीं रहे। वह भी रोने लगी, कुछ माँ की दुर्दशा और कुछ अपनी गिल्ट को लेकर। हर्ष भी सोया नहीं था, माँ-बहन को रोता देख वह भी रोने लगा। ऐसे में शीतल का फिर फोन आ गया। आरती ने उठा लिया,
हैलो की जगह सुबकी चली गई।
उसने सख्ती से कहा, अरे- मैसेज फाॅरवर्ड करो ना!
जी...! रुलाई बंद करने के प्रयास में आरती अपने आँसू नाक से सुड़कने लगी।
वह हौंसला देता बोला, ईश्वर का नाम लेकर करो, अभी करो!
आरती को लग रहा था, जैसे- रिमोट का बटन दबाते ही न्यूक्लियर विस्फोट हो जाएगा! पल भर में सब कुछ स्वाहा! अभी इसी दम नक्सली आकर उन तीनों को भून जाएँगे! दूसरे मन में आया, क्या वे आदिवासी बनाम गैर-आदिवासियों की लड़ाई लड़ रहे हैं! ऐसा तो नहीं... भरत ने सुपारी दी भी तो सोचेंगे नहीं लेते हुए कि इन मासूमों को मौत के घाट क्यों उतारें!
कर दिया? उसने फिर पूछा।
कर रहे हैं! आवाज मुश्किल से निकल रही थी।
करो ना! उसने जोर दिया।
तब उसने आँख बंद कर गोया रिमोट से मिसाइल दाग दी और...रेश्मा को पकड़ सूखे पत्ते सी काँपने लगी।
दोस्त आश्वस्त हो गया। और एक फल और निकला- रात में उठ कर रेश्मा ने वो नम्बर ब्लैकलिस्ट में डाल दिया, जिस पर बात करने से उसके जाने ये नौबत आ गई थी।
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