sachchai - 1 in Hindi Motivational Stories by Asmita Madhesiya books and stories PDF | सच्चाई - 1

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सच्चाई - 1

कहानी को कहानी उसके किरदार बनाते हैं। ठीक उसी तरह इस कहानी के किरदार भी हैं। कुछ हो ना हो इन किरदारो में आप अपने आप को जरूर तलाशेंगे।

कहानी में कई किरदार हैं, उसमे से एक है मोना जो एक ऐसी लडकी थी जो अपने ही ख्यालो मे खोयी रहती थी, वोह एक ऐसी आलसी लडकी थी जो बाकी सभी महान आलसियो को पीछे छोड सक्ती थी। मोना का अल्सिपन समय के साथ बढते ही जा रहा था। और अब ऐसा हो गया था की उसे फर्क पडना भी बन्द हो गया था की कोई उसे क्या कहता है। उसका मन पसंद काम सिर्फ सोना और किसी ना किसी बहाने से आराम करना था। वैसे तो मोना कक्षा 11 में पढ्ने वाली छात्रा थी, पढाई में उसका मन तो बहुत लगता था। लेकिन उससे भी ज्यादा उसका मन आराम करने में लगता था। वोह अकसर बिस्तर पर या सोफे पर लेटे हुये मिलती थी या सोये हुये, समय देख कर अपनी पढाई पर भी ध्यान दिया करती थी।

मोना के परिवार में उसके माँ बाप के अलावा उसके दादा -दादी जो अकसर बिमार रहते थे, और एक छोटा भाई बब्लू था। मोना के माँ बाप उसके आल्सिपन से बहुत परेशान थे, लेकिन इससे मोना को क्या लेना देना ।

मोना की माँ सुरेखा - "जरा सब्जी काट दे।"

मोना -" हाँ माँ "

फिर क्या था सुरेखा घंटो इन्तजार करती रह जाती पर मोना का कोई अता पता ना होता, होता भी क्यूं भला वोह आराम करने मे जो वयस्थ रहती थी।

मोना की इस आदत से सुरेखा परेशान हो चुकी थी। कभी कभार तोह वोह उसे काफी कुछ सुना देती, और कभी कभार बस गुस्से भरी नजरों से देखती रह जाती।

रोज के काम काज में मन ना लगाने की वजह से मोना को इस बात का बिल्कुल ज्ञान ना था की अगर जीवन में कभी उसे किसी बडे काम को अकेले करना पड़ा तोह वोह कैसे करेगी?

पूरे घर में एक बब्लू ही था जो उससे उम्र में छोटा था, जिसके आगे उसकी खूब चलती थी। और वोह उसे किसी काम के लिये
मना भी ना करता था। बब्लू सिर्फ आठ साल का था इसलिये वह बहुत सारी बातों को समझने के लिये छोटा भी था । और इसी बात का फायदा मोना उठाती थी ।वह अकसर उसे उल्लु बना कर अपना काम निकलवा ही लेती थी।

सुरेखा - " मोना जा कर बाज़ार से समोसे ले आ। "

मोना -" हाँ माँ।"

मोना चुपके से बब्लू के पास जाती जो बाल्कनी में खेल रहा होता है।

मोना -" बब्लू जा कर बाज़ार से समोसे ले आ।"

बब्लू- " मुझे पता है, येह काम तुम्हरा था।"

मोना -" अरे नही बब्लू, तुझसे मै अपना काम क्यू करवने लगी भला। मै इतनी भी बुरी ना हूँ। वो तो बस माँ ने कहा था की बब्लू से कह दे तोह मैने कह दिया।"

रविवार का दिन था, सुरेखा अपने घर के कामो में उलझी हुई थी। मोना बाल्कनी में बैठ कर गुलाब के पौधो को निहार रही थी। और बब्लू कड़ी धूप में पड़ोस की लीला चाची के बच्चो के साथ खेल रहा था।

तभी अचानक से फोन की घंटी बजती है, वोह फोन जो बाल्कनी से दस कदम की दूरी पर रखा हुआ था। फोन की घंटी लगातर बजने के बावजूद मोना उसे नही उठती येह सोच कर की कोई तो आ कर जरूर उठा लेगा।

फोन की घंटी बजते बजते बन्द हो जाती है। लेकिन मोना का आलस बन्द ना हो पा रहा था। घंटो बीट गये और अब फिर से फोन की घंटी बजना चालू होता है , अब तक सुरेखा भी काम निपटा चुकी होती है वोह बाल्कनी से गुज़र ही रही थी की उसे घंटी सुनाई देती है। वोह पहले मोना को गुस्से भरे नजरों से देखती है फिर फोन उठाती है।

फोन मोना की माँ की बुआ का होता है। बुआ ने सुरेखा और उसके पूरे परिवार को अपने बेटे की शादि का बुलावा देने के लिये फोन किया था।

सुरेखा का मन तो बहुत था वोह अपने बुआ के बेटे की शादी मे बुआ के घर जए। मन भी क्यो ना करता इतने साल जो बीत चुके थे लगभग दस साल वह अपनी बुआ से ना मिली थी।शादी होने के बाद घर गृहस्ती में इतना उलझी की ज्यादा कही घूम फिर ना पायी।