एपिसोड 45 — “जब कलम ने वक़्त को लिखना शुरू किया”(कहानी: मेरे इश्क़ में शामिल रुमानियत है)--- 1. वक़्त के परे एक आवाज़रात का सन्नाटा जैसे किसी अदृश्य जादू में जकड़ा था।दिल्ली की हलचल बहुत पीछे छूट चुकी थी —अब सिर्फ़ रूह की कलम का स्टूडियो नीली रौशनी में डूबा था।रूहाना फर्श पर बैठी थी, उसकी उंगलियाँ अब भी नीली चमक से भरी थीं।कलम उसके सामने रखी थी — मगर इस बार वो शांत नहीं थी।वो हल्के-हल्के कंपन कर रही थी,जैसे कोई पुरानी रूह उसमे साँस ले रही हो।अर्जुन ने दरवाज़ा खोला —“रूहाना… सब ठीक है?”उसने सिर उठाया।“नहीं अर्जुन।