भाग 16 रचना: बाबुल हक़ अंसारी“साज़िश का तांडव और एक बलिदान की कीमत”पिछले भाग से…"कभी-कभी लगता है, आर्या… मैं तुम्हें खो दूँगा।" रात की वो आग… जो सब कुछ बदल गईरात शांत थी, लेकिन हवा में बेचैनी घुली हुई थी।कॉलेज के बाहर एक पुरानी जीप धीरे-धीरे रुकी।चार नकाबपोश उतरे — हाथों में पेट्रोल के ड्रम और माचिस की तीलियाँ।उसी वक्त, अंदर आर्या अनया के साथ अगले दिन की रैली की तैयारी कर रही थी।"हमें ये पांडुलिपि कल सुबह चौक पर सबके सामने पढ़नी है।अगर लोगों ने इसे सुन लिया, तो डर की दीवार गिर