उजाले की ओर –संस्मरण

  • 129

================ स्नेहिल नमस्कार मित्रों      हम मनुष्य छोटी छोटी परेशानियों से परेशान हो जाते हैं, घबरा जाते हैं, विवेक खो बैठते हैं और परेशान हो जाते हैं किंतु जीवन का अनिवार्य हिस्सा हैं परीक्षाएं। यह सिलसिला जन्म से ही शुरू हो जाता है। परिजन, रिश्तेदार, दोस्त, पड़ोसी आदि नवजात शिशु को देखकर ही परखने लग जाते हैं कि क्या यह आम शिशुओं जैसा है या नहीं? उसके अंग-प्रत्यंग, हाव-भाव, रंग-रूप ठीक हैं, स्वाभाविक हैं। यह हुई पहली परीक्षा। स्कूल में पढ़ाई-लिखाई , खेल-कूद, व्यवहार, शिष्टाचार आदि हर चीज के लिए उसको अपने आप को साबित करना पड़ता है। स्कूल