एपिसोड 32 — "वो जो परछाईं बन गया" हवेली के दरवाज़े पर टंगी नई पेंटिंग अब हवा में हौले-हौले झूल रही थी। रात की नीली रौशनी अब भी दीवारों से रिस रही थी, और गुलाब की महक में किसी अधूरी साँस की आहट शामिल थी। अर्जुन ने पेंटिंग के सामने खड़े होकर अपनी हथेली बढ़ाई। उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने भीतर से उसका नाम पुकारा हो — “अर्जुन…” वो आवाज़ रुमी की थी, पर हवा में तैरती हुई… बिना किसी शरीर के। उसने आँखें बंद कीं, और वही नीली चमक फिर उभरी। रुमी की परछाई