सोने का पिंजरा - 27

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रात गहरी हो चुकी थी. बंगले के तहखाने में जल रही मद्धम पीली रोशनी रहस्यमयी माहौल बना रही थी. कबीर के हाथ में वह दस्तावेज था, जिस पर सुनहरे अक्षरों से लिखा था—सोने का पिंजरा — दौलत से भी गहरी कैद, मोहब्बत से भी कठिन परीक्षा।कबीर ने गहरी साँस ली, शहवार की ओर देखा.कबीर( तेज आवाज में)ये सब दौलत. ये सब शोहरत. ये तो बस परछाईं है, शहवार. असली खेल तो किसी और का लिखा हुआ है।शहवार( चौंकते हुए)कबीर, क्या मतलब? कौन- सा खेल?कबीर( आँखें गडाकर)इस तहखाने की दीवारें. ये दस्तावेज. सब बताता है कि ‘सोने का पिंजरा’ कोई दौलत