सोने का पिंजरा – अगला अध्याय: कबीर की असली पहचानरात की नमी अभी भी शहर की सडकों पर बसी हुई थी. बाहर लोग सोए थे, मगर तहखाने की गहराई में एक जागता हुआ सच अपनी सांसें तेज कर रहा था.कबीर ने शीशे के सामने खडे होकर अपने चेहरे से भिखारी का रूप उतारा. झुर्रियों और धूल के पीछे से निकला असली कबीर—तेज नयन- नक्श वाला, ऊँचे खानदान की शान उसके पूरे हाव- भाव में झलक रही थी. उसने गहरी सांस ली और धीमे स्वर में खुद से कहा—कबीर( मन ही मन)काफी समय हो गया इस खेल को निभाते- निभाते. अब