उस समय कोई मदद की उम्मीद करना बेकार था । अभी तक एक भी गाड़ी उन्हें नहीं मिली थी और न ही आस-पास किसी बस्ती के होने का कोई अंदेशा था।राज शांति को भंग करते हुए बोला " इस समय यहाँ इस वीरान और सुनसान जगह पर खड़े रहने से तो अच्छा है कि हम ढाबे तक गाड़ी को धकेल कर ले चलें। शायद वहाँ हमें कोई मदद मिल जाये।""सही कहा और हो सकता है वहाँ हमारे मोबाइल पर नेटवर्क भी मिल जाये, तब हम किसी तरह मदद की उम्मीद कर पाएंगे" मुकेश ने राज की बात का समर्थन करते