द्वारावती - 55

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55दूसरे दिन गुल ने निश्चय कर लिया कि वह अब किसी भी स्वर पर, किसी भी सुर पर तथा किसी भी ध्वनि पर विचलित नहीं होगी। वह अपना गीता गान पूर्ण करेगी। उससे पूर्व वह आँखें नहीं खोलेगी। उसने श्री कृष्ण का ध्यान धरा, गीता गान प्रारम्भ कर दिया। उसके मुख से श्लोकों का प्रवाह बहने लगा। उसे सुनने के लिए समुद्र अपनी तरंगों के माध्यम से गुल के सम्मुख आने लगा। समुद्र पुन: सुमधुर संगीत का सर्जन करने लगा। गुल बोल रही थी-सर्व धर्मान परित्यजय, मामेकम शरणम ब्रज।अहं त्वा सर्व पापेभ्यो मोक्षयिश्यामि, मा शुच:।।शब्द एवं संगीत का अनुपम मिलन हो