साथिया - 127

नेहा और आनंद के जाने  के बादसांझ तुरंत अपने कमरे में चली गई उसे बहुत ही बुरा लग रहा थाआज  उसने दो साल से ज्यादा के समय के बाद नेहा को देखा था। दिल उसका कर रहा था नेहा के गले लगने का और साथ ही साथ दिमाग में घूम रही थी वह सब बातें जो कि उसके साथ पिछले दो सालों के बीच हुई। और कहीं ना कहीं जिस तरीके से अक्षत ने कहा इन सब की शुरुआत नेहा से ही हुई थी। भले उसने जानकर किया हो या अनजाने में पर उसके किए की सजा साँझ  ने भुगति