साथिया - 116

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" तुम अब  मेरे पास हो मेरे करीब..!! अब तुम्हें कोई भी नहीं छू सकता इसलिए तुम बिल्कुल निश्चित रहो।  और  अब सजा मिलने की वारी उन लोगों की है। तुम्हें तो उन्हें जितनी तकलीफ देनी थी दे चुके अब तकलीफ बर्दाश्त करने की हद उनकी देखनी है मुझे।" "मुझे कुछ नहीं चाहिए  जज साहब। बस आपका साथ रहे और कुछ भी नहीं।एक-एक  पल  मैंने आपको याद किया था जज साहब। उन दो दिनों जब मैं वहां रही थी एक-एक पल में मेरा दिल बेचैन था। बस एक ही और एक ही ख्याल आ रहा था कैसे भी करके मैं आपके