शून्य से शून्य तक - भाग 31

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31 कहाँ अमरावली पर्वत का नैसर्गिक सौन्दर्य और कहाँ महानगर की चकाचौंध वाला शहर ! यहाँ से महसूस होता मानो धरती और आसमान एक-दूसरे के गले मिलने के लिए आतुर हों | प्रेम की प्रकृति ही ऐसी है जो अपने पास खींच ले जाती है, मन के भीतर सहजता से उतरती जाती है, एक ऐसी संवेदना से भर देती है जो मन की गहराइयों में उतरे बिना नहीं रहती | आज आशी इस नैसर्गिक सौन्दर्य में भीगने की कोशिश ज़रूर कर रही है किन्तु उसने कभी उस सुंदरता को अपने मन का हिस्सा क्यों नहीं बनाया जो उसके चारों ओर