प्रफुल्ल कथा - 17

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मुझे अपने पितामह पंडित भानुप्रताप राम त्रिपाठी और पिताजी आचार्य प्रतापादित्य की तरह डायरी लिखने का शौक था |वे डायरियाँ स्वांतः सुखाय के लिए लिखते थे | इन दिनों जब अपनी आत्मकथा लिख रहा हूँ उसके लेखन में मेरी वे डायरियाँ भी काम आ रही हैं | तो शुरु करूँ ? वर्ष 1978 के अगस्त माह के मेरे वेतन का विवरण कुछ इस प्रकार था -मूल वेतन चार सौ चालीस , डी.ए.118-80, ए.डी.ए.66 रुपये |कुछ कटौती आदि के बाद कुल वेतन 607 रुपये तीस पैसे मिला था | मेरे पास खर्च करने के लिए कुछ खास मद नहीं था लेकिन