(5) हनुमान्जी के द्वारा भरतजी का प्रश्न और श्री रामजी का उपदेश* सुनी चहहिं प्रभु मुख कै बानी। जो सुनि होइ सकल भ्रम हानी॥अंतरजामी प्रभु सभ जाना। बूझत कहहु काह हनुमाना॥2॥ भावार्थ:-वे प्रभु के श्रीमुख की वाणी सुनना चाहते हैं, जिसे सुनकर सारे भ्रमों का नाश हो जाता है। अंतरयामी प्रभु सब जान गए और पूछने लगे- कहो हनुमान्! क्या बात है?॥2॥ * जोरि पानि कह तब हनुमंता। सुनहु दीनदयाल भगवंता॥नाथ भरत कछु पूँछन चहहीं। प्रस्न करत मन सकुचत अहहीं॥3॥ भावार्थ:-तब हनुमान्जी हाथ जोड़कर बोले- हे दीनदयालु भगवान्! सुनिए। हे नाथ! भरतजी कुछ पूछना चाहते हैं, पर प्रश्न करते मन