खण्डकाव्य रत्नावली 15 रामगोपाल भावुुक के उपन्यास ‘’रत्नावली’’ का भावानुवाद रचयिता :- अनन्त राम गुप्त बल्ला का डेरा, झांसी रोड़ भवभूति नगर (डबरा) जि. ग्वालियर (म.प्र.) 475110 पंचदस अध्याय – संत दोहा – सोमवती जब जब पड़े, रतना करती ध्यान। चित्रकूट के दृश्य लख, हो आनंद महान।। 1 ।। शिक्षण का जो नित क्रम चलता। उससे ही तो घर है पलता।। सोमवती संतन के जत्था। निकलें द्वारे करे व्यवस्था।। रतना उनसे पूछत रहती। कहां गुसांई मिलहै कहती।। कहें संत अब जगे गुसांई। उनके दर्शन को