गांव और लोक संस्कृति

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गांव और लोक संस्कृतिके बी एल पाण्डेय'लोक' और 'संस्कृति' शब्द कोषतः चाहे.. कितना व्यापक अर्थ रखते हों, किंतु आज परस्पर सन्निधि में सामान्यतः आशय विशेष में रूढ़ है । लोक संस्कृति के स्वरूप को संकुचित परिधि से मुक्त करके व्यापक तो प्रदान करने के मोह में प्रायः उसे संपूर्ण मानव संस्कृति का पर्याय मारने का कामनापरक प्रयत्न किया जाता है। इस के मूल में एक तो यह विचार है कि संस्कृति के रूप में जो आधारभूत मूल्य निर्मित होते हैं वे संपूर्ण समाज के होते हैं और संस्कृति को अंशतः विभाजित नहीं किया जा सकता। दूसरे लोक संस्कृति से जुड़ा