राज-सिंहासन--भाग(१४)

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तब ज्ञानश्रुति ने निपुणनिका से कहा.... निपुणनिका! अब मैं आ गया हूँ,अब मैं तुम्हें कोई भी कष्ट नहीं होने दूँगा और जिसने तुम्हारी ये दशा की है उससे अवश्य ही प्रतिशोध लूँगा तभी मेरे हृदय की अग्नि शान्त होगी।। जी! भ्राता! मुझे भी आपसे ऐसी ही आशा है,निपुणनिका बोली।। तभी सहस्त्रबाहु बोला..... राजकुमार ज्ञानश्रुति! आप दोनों वार्तालाप कुछ क्षणों के पश्चात कर लीजिएगा,अभी राजकुमारी निपुणनिका को इस पाषाण रूपी धड़ से मुक्त कराना है,मैँ कुछ ऐसे मन्त्र पढ़ता हूँ जिससे राजकुमारी निपुणनिका अपने पूर्व रूप में आ जाऐगीं।। जी! भ्राता सहस्त्र! आप कुछ ऐसा ही कीजिए,मैं भी चाहता हूँ कि