राज-सिंहासन--भाग(११)

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यदि आप सभी का परिहास पूर्ण हो गया तो पुनः योजना के विषय में वार्तालाप प्रारम्भ करें,सोनमयी चिढ़ते हुए बोली.... हाँ..हाँ..अवश्य मेरी बहना! इसमें इतना क्रोधित होने की आवश्यकता नहीं है,वीरप्रताप बोला।। क्रोधित ना होऊ तो क्या करूँ? आप सभी मेरे घाव पर परिहास जो कर रहे हैं,सोनमयी बोली।। अच्छा! नहीं करते परिहास,अब तुम अपने मुँख की भंगिमाओं को तनिक विश्राम दो,वीरप्रताप बोला।। हाँ..तो मैं ये कहना चाहता हूँ कि मुझे,सोनमयी और वीर को कुछ तांत्रिक विद्या का भी ज्ञान है,अधिक तो नहीं किन्तु यदि कहीं कोई मार्ग दिखाई ना दे तब हम उसका उपयोग करते हैं,सहस्त्रबाहु बोला।। सच! भ्राता!