बोलता आईना - 4 - अंतिम भाग

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बोलता आईना 4 (काव्य संकलन) समर्पण- जिन्होंने अपने जीवन को, समय के आईने के समक्ष, खड़ाकर,उससे कुछ सीखने- समझने की कोशिश की, उन्हीं के कर कमलों में-सादर। वेदराम प्रजापति मनमस्त मो.9981284867 दो शब्द- आज के जीवन की परिधि में जिन्होंने अपने आप को संयत और सक्षम बनाने का प्रयास किया है,उन्हीं चिंतनों की धरोहर महा पुरुषों की ओर यह काव्य संकलन-बोलता आईना-बड़ी आतुर कुलबुलाहट के साथ,उनके चिंतन आँगन में आने को मचल रहा है।इसके बचपने जीवन को आपसे अवश्य आशीर्वाद मिलेगा,इन्हीं अशाओं के साथ-सादर। वेदराम प्रजापति मनमस्त गुप्ता पुरा