पार - महेश कटारे - 2

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महेश कटारे - कहानी–पार 2 कमला मोहिनी में बँध उठी। घाटी और उसके सिर पर तिरछी दीवार की तरह उठे पहाड़ पर जगर–मगर छाई थी। जुगनुओं के हजारो–लाखों गुच्छें दिप्–दिप् हो रहे थे। लगता था जैसे भादों का आकाश तारों के साथ घाटी में बिखर गया है। चमकते–बुड़ाते जुगनू कमला को हमेशा से भाते हैं। सांझी में क्वार के पहले पाख में लड़कियाँ कच्ची–पक्की दीवार पर गोबर की साँझी बनाती थीं। दूसरी लड़कियाँ तो अपनी–अपनी पंक्ति तोरई के पीले लौकी के सफेद, या तिल्ली के दुरंगे फूलों से सजाती थीं, कमला अपनी पंक्ति में जुगनू चिपका देती, फिर