पश्चाताप. - 11

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लगभग दो घण्टे के पश्चात शशिकान्त की माँ की आँखें बाबू के रोने के साथ ही खुल जाती हैं | बाबू जब बहुत कोशिशों के बाद भी चुप न हुआ तो वह पूर्णिमा को देने का विचार कर जैसे ही पूर्णिमा के कमरे की तरफ बढ़ती है कि , अचानक ठिठक कर, अरे नही! ऐसे कैसे दे दूँ ! बिना उसका निर्णय जाने | तभी बाबू के रोने की आवाज तेज हो जाती है | बाबू की चित्कारे शशिकान्त की माँ के हृदय को द्रवित कर देती है,और वह अपने ही अन्तरमन मे चल रहे अन्तरद्वन्द से हार मान लेती