क्या मोदी भारत का प्रशासनिक विकास सिंगापुर की तर्ज़ पर करना चाहेंगे?
मेरा जवाब है - 100% !! LKY सिंगापुर के विकास पुरुष थे एवं सिंगापुर के कथित विकास के लिए उन्हें ही जिम्मेदार माना जाता है। और मोदी साहेब LKY की नीतियों पर LKY से भी तेज रफ़्तार से चल रहे है। किन्तु LKY की नीतियां क्या थी, और इससे सिंगापुर में क्या बदलाव आया, इस बारे में पेड मीडिया बिलकुल उल्टी तस्वीर पेश करता है।
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Lee Kuan Yew = LKY ने सिंगापुर की काया पलटने के लिए एक बेहद आसान रास्ता चुना — उसने देश ब्रिटिश के हवाले कर दिया !!!
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नतीजा ; 1960 में सिंगापुर में ईसाई आबादी सिर्फ 4% थी , जो अब बढ़कर 20% हो गयी है। इसके अलावा आज सिंगापुर की पूरी अर्थव्यवस्था ब्रिटिश , अमेरिकन और यूरोपियन कम्पनियों के नियंत्रण में है !!
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1920 के आसपास ब्रिटिश साम्राज्य ने अपना प्रभाव बढाने के लिए एक नए तरीके का इस्तेमाल करना शुरू किया। वे ऐसे नेताओं को प्रोत्साहन देने लगे जो बोलते तो ब्रिटिश के खिलाफ थे , लेकिन कार्य सभी ऐसे करते थे जिससे ब्रिटिश को फायदा हो। मोहन गांधी इस कैटेगरी में उनका सबसे बेहतर प्रोडक्ट था। उसकी भाषणबाजी ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ होती थी , अत: इसे सुनकर ब्रिटिश के खिलाफ लोगो में पनप रहा गुस्सा काफूर हो जाता था। लेकिन मोहन इस नौटंकी द्वारा क्रन्तिकारी युवाओं को बड़ी तेजी से नारेबाज एवं निरापद सामाजिक कार्यकर्ताओ में रूपांतरित कर रहा था।
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बाद में पेड मीडिया के माध्यम से इस तकनीक का इस्तेमाल उन नेताओं को उभारने में किया गया, जिनका ब्रिटिश जाहिर तौर पर छद्म विरोध करते थे, एवं अमुक नेता भी इस तरह से प्रदर्शित करता था कि वह ब्रिटिश-विरोधी नजर आये। लेकिन अमुक नेता उन नीतियों का समर्थन करता था, जिससे अमेरिकी-ब्रिटिश उद्योगपतियों को फायदा हो और स्थानीय उद्योग टूटते चले जाए। लेकिन इसे इस तरह रचा जाता था जिससे अवाम को यह लगे कि, अमेरिकी-ब्रिटिश हमारे नेता का प्रतिरोध कर रहे है , लेकिन इस प्रतिरोध के बावजूद हमारा नेता आगे बढ़ता जा रहा है !!!
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सिंगापुर का LKY = ली इसी श्रेणी का नेता था। उसके तेवर देखकर लगता था कि यह आदमी अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों के खिलाफ है, और अमेरिकी-ब्रिटिश धनिक भी कभी कभार उसके प्रति अपना रोष प्रकट करते थे। साथ ही अमेरिकी-ब्रिटिश धनिक इस तरह का दिखावा करते थे, जिससे अवाम को यह लगे कि अमेरिकी-ब्रिटिश धनिक 'ली' को तोडना चाहते है। लेकिन अमेरिकी-ब्रिटिश धनिको एवं 'ली' के बीच इस तरह का सुविधापूर्ण गठजोड़ था कि ये दोनों एक दुसरे को फायदा पहुंचाते थे !! और 'ली' ने पश्चिमी धनिकों के पक्ष में इस तरह की नीतियाँ बनायी कि पूरे सिंगापुर में स्थानीय उद्योगों का नाश हो गया !!
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सिंगापुर आज सिर्फ बहुराष्ट्रीय कम्पनियों एवं कारोबारियों का हेडक्वाटर बन कर रह गया है। सिंगापुर में किसी भी प्रकार की निर्माण इकाइयां नहीं है , हथियारों का निर्माण तो दूर की बात है। सिंगापुर की तुलना यदि इस्राएल से की जाये तो इस्राएल में निर्माण इकाइयों का मजबूत ढांचा मौजूद है , एवं अपने आधुनिक हथियारों का उत्पादन इस्राएल खुद करता है।
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LKY का कहना था कि — वे सिंगापुर को इस्राएल बनाना चाहते है !!
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मतलब लफ्फाजी करने की एक हद होती है !! इस्राएल इतना शक्तिशाली है कि, भारत अपनी सेना इस्राएल के बने हथियारों पर चला रहा है, और सिंगापुर को बढ़िया क्वालिटी के कैपीसीटर भी बनाने नहीं आते है !! इस्राएल बनने के लिए अपने हथियार बनाने की ताकत खुद से जुटानी होती है !! पराएँ देशो के भरोसे अपनी सेना चलाने से इस्राएल नहीं बनता है !! और जब तक आप हथियार नहीं बनाते तब तक आप इस्राएल नहीं बनते। आप सिंगापुर, फिलिपिन्स, सऊदी अरब ही बन सकते है !! मलतब परजीवी देश, जिन्हें फोन और पेन ड्राइव भी दुसरे मुल्क बनाकर देते है !!
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1960 के बाद सिंगापुर के इतिहास में मुख्य रूप से ध्यान देने योग्य बात यह है कि — आखिर क्यों मलेशिया व इंडोनेशिया सिंगापुर को आपस में आधा आधा बाँट लेने में सफल नहीं हुए थे ?
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वजह अमेरिकी-ब्रिटिश धनिक थे। तब इंडोनेशिया एंव मलेशिया के नेताओं पर भी अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों का पर्याप्त नियंत्रण था, और वे सिंगापुर को टेकओवर होने देना नहीं चाहते थे।
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बाद में अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों एवं जापानियों का कारोबारी नियंत्रण एशिया में बढ़ गया। लेकिन इन सभी देशो में सैन्य विद्रोह और / या कम्युनिस्ट क्रांति की सम्भावना के चलते उन्हें एक सुरक्षित देश की तलाश थी। उन्होंने पहली प्राथमिकता सिंगापुर को दी। हांगकांग उनकी दूसरी पसंद था।
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'ली' ने सब कुछ आउटसोर्स कर लिया था — नीतियों से लेकर निष्पादन तक !! बदले में अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों ने सिंगापुर शहर को उतने अच्छे से प्रबंधित किया, जितना पश्चिम में भी कोई शहर नहीं है।
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तो इसमें दिक्कत क्या है ?
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इस तरह के विकास के लिए मोटी कीमत चुकानी पड़ती है। पहला नुकसान यह है कि जब विदेशी पूँजी आती है तो वह स्थानीय धर्म को अपने धर्म से बदल देती है — कोई दया नहीं , कोई अपवाद नहीं !!
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भारत के ब्रांडेंड नेताओं के भगत विदेशी निवेश आने की ख़ुशी में सड़को पर इसीलिए नाच रहे है, क्योंकि वे इस कड़वे सत्य पर चर्चा से बचना चाहते है !! 1960 में जब 'ली' ने सत्ता सम्भाली थी तो सिंगापुर में इसाईयत सिर्फ 4% थी, जो कि अब बढ़कर 20% हो गई है !! यह वृद्धि दर भी तब है , जब ईसाई समुदाय में जन्म दर काफी निम्न रहती है। इस सम्बन्ध में और अधिक जानकारी के लिए गूगल करें।
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अगला नुकसान — अमेरिकी-ब्रिटिश कम्पनियों ने स्थानीय निर्माण एवं हथियार निर्माण इकाइयों को पूरी तरह से ख़त्म कर दिया।
आज सिंगापुर बन्दुक नहीं बनाता , कारतूस नहीं बनाता और यहाँ तक कि वे 1 ग्राम गन पाउडर तक नहीं बनाते !! सिंगापुरियन कारे तो नहीं बनाते , लेकिन वे कारो के टायर तक नहीं बनाते !! वहां सभी प्रकार का बेहतरीन सामान उपलब्ध है — लेकिन यह सभी आयातित है !!
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गणित-विज्ञान एवं इंजनियरिंग की शिक्षा का स्तर वहां अच्छा है। लेकिन वास्तविक निर्माण इकाइयां न होने की वजह से यह शिक्षा सिर्फ पाठ्यक्रम एवं जबानी जमा खर्च तक ही सीमित है। वहां इसकी कोई व्यवहारिक उपयोगिता नहीं। क्योंकि सिर्फ निर्माण इकाइयों की आपसी प्रतिस्पर्धा ही इंजीनियरिंग के स्नातको को अपना हुनर तराशने का अवसर देती है। किताबी ज्ञान सिर्फ आभासी ज्ञान है। एक दुसरे का चमड़ा उधेड़ देने वाली वास्तविक प्रतिस्पर्धा में इंजीनियरिंग के स्नातको की क्षमता उस किशोर के समान है , जिसने ब्रूस ली की सभी फिल्मे दर्जनों बार देखी हो, लेकिन कभी रिंग में न उतरा हो।
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तो अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों ने सिंगापुर को अधिगृहित करने बाद उनकी विज्ञान-गणित एवं इंजीनियरिंग की शिक्षा का कबाड़ा क्यों नहीं कर दिया ?
वजह - अमेरिकी-ब्रिटिश धनिक सिंगापुर को समृद्ध होता दिखाना चाहते थे , वर्ना सिंगापुर के मलेशिया में विलय होने की मांग बढ़ जाती। लेकिन फिलिपिन्स के साथ ऐसी कोई शर्त नहीं थी, अत: अमरीकी-ब्रिटिश धनिकों ने फिलिपिन्स में विज्ञान-गणित की शिक्षा को बर्बाद कर दिया।
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उदाहरण के लिए, गोरो ने अपने ज्यादातर उपनिवेशों में 1885 के बाद पाठ्यक्रम में गणित-विज्ञान को शामिल करना शुरू कर दिया था। भारत में भी तब गणित-विज्ञान की पुस्तकें जोड़ी गयी। मैकाले की अनुशंसा के 50 साल बाद !! क्योंकि गोरो को हथियारों के उत्पादन की जरूरत थी। बाद में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गोरो ने भारत में हथियार निर्माण की बड़े पैमाने पर फैक्ट्रियां लगायी। तब गोरो को एक अतिरिक्त सप्लाई लाइन खोलने की जरूरत थी, ताकि इंग्लेंड की सप्लाई लाइन टूट जाए तो भारत से हथियार पहुंचाए जा सके। तो भारत में गणित-विज्ञान का जो बेहतर आधार था उसकी वजह ब्रिटिश थी। लेकिन 1990 में WTO एग्रीमेंट होने के साथ ही अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों ने भारत में प्रवेश करना शुरू किया, और तब से लगातार हमारे विज्ञान-गणित के पाठ्यक्रम को कमजोर किया जा रहा है।
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वे किस तरह भारत में गणित-विज्ञान का आधार कमजोर कर रहे है, इस बारे में यह जवाब पढ़ें - भारत हथियारों की इंजीनियरिंग में अमेरिका को कैसे पछाड़ सकता है? के लिए Pawan Kumar Sharma का जवाब
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अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों ने साउथ कोरिया में 1960 में प्रवेश किया था। तब कोरिया में ईसाई आबादी 4% थी, जो आज बढ़कर 40% ( ऑफिशियली यह 29% है ) हो गयी है !! लेकिन नार्थ कोरिया के साथ संभावित प्रतिरोध से निपटने के लिए अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों ने साऊथ कोरिया में निर्माण इकाईयो को बनाए रखा , परन्तु हथियार निर्माण इकाइयों को पूरी तरह से खत्म कर दिया था। साउथ कोरिया में भी आज जो निर्माण इकाईया है उन पर तथा उनकी समूची अर्थव्यस्था पर अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों का नियंत्रण है।
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साउथ कोरिया को बेचने का काम PCH = Park Chung Hee ने किया था। 'ही' 1963 में सत्ता में आया और अगले दस वर्षो में उसने पूरा दक्षिण कोरिया अमेरिकी-ब्रिटिश के हवाले कर दिया था। रिपेट्रीएशन क्राइसिस की वजह से 1999 तक साउथ कोरिया 2 बार बैंक करप्ट हुआ और अमेरिकी-ब्रिटिश धनिको ने उनकी सारी राष्ट्रिय सम्पतियों एवं सरकारी भूमि का अधिग्रहण कर लिया था।
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तो जैसे ही अमेरिकी-ब्रिटिश धनिक मलेशिया को ख़त्म करने में सफल होंगे , जो कि वे चाइना को कमजोर करने के बाद ही कर सकेंगे, वैसे ही सिंगापुर को वे फिलिपिन्स में रूपांतिरत कर देंगे। और तब सिंगापुर किसी भी तरह अपनी अर्थव्यवस्था बचा नहीं सकेगा , क्योंकि उनकी अर्थव्यवस्था पर आज भी उनका नियंत्रण नहीं है।
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मोदी साहेब LKY एवं PCH की तर्ज पर ही काम कर रहे है। आप देख सकते है कि, वे बेहद तेजी से भारत की अर्थव्यवस्था अमेरिकी-ब्रिटिश कम्पनियों के हवाले कर रहे है। तो अमेरिकी-ब्रिटिश धनिक भारत पर पूर्ण नियंत्रण बनाने के बाद भारत का इस्तेमाल चीन को तोड़ने में करेंगे। यदि चीन से भारत का युद्ध का होता है, तो भारत का इराकीकरण हो जाएगा और यदि युद्ध टल जाता है तो बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारत को एक विशाल फिलिपिन्स में बदल देगी। एक विशाल फिलिपिन्स में बदल जाने का क्या आशय है, इस बारे में मैंने ऍफ़ डी आई से सम्बंधित अपने कई जवाबो में लिखा है।
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कैसे अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों का नियंत्रण भारत पर बढ़ता जा रहा है ?
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कम्युनिकेशन यानी संचार के साधनों पर अमेरिकी पूरी तरह से नियंत्रण बना चुके है। इलेक्ट्रोनिक मीडिया एवं सोशल मीडिया पर उनका 100% नियंत्रण है। हालात यह है कि भारतीय सेना के उच्च अधिकारी अपने सैन्य कम्युनिकेशन के लिए भी व्हाट्स एप का इस्तेमाल कर रहे है। कोमकासा एग्रीमेंट के बाद भारत की सभी सैन्य गतिविधियों के बारे में अमेरिका की सेना को पूर्व सूचना रहती है, और उन्हें अद्यतन सूचनाएं भी मिलती रहती है।
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हमारी सेना में अमेरिकी-ब्रिटिश-फ्रेंच हथियारो का हिस्सा बढ़ता जा रहा है, और हम इनके स्पेयर पार्ट्स के लिए अमेरिकीयों पर निर्भर रहेंगे। जब युद्ध होता है पूरा युद्ध संचार साधनों की गोपनीयता पर निर्भर करता है। हमारे पूरे संचार साधनों पर अमेरिका को हमसे ज्यादा एक्सेस मिला हुआ है। और हम अमेरिकी हथियारों पर अपनी सेना चला रहे है।
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डिफेंस डील ( कॉमकासा एग्रीमेंट ) के संदर्भ में कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य ने जो कार्टून बनाया था वह इस नीति पर सबसे सटीक टिप्पणी है। मतलब इससे आगे कहने को कुछ रह नहीं जाता।
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अभी मोदी साहेब ने भारत सरकार की जमीनों को अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों को बेचना शुरु किया है। यह काफी गंभीर विषय है। कृपया इस बात पर ध्यान दें कि सरकार की असीमित शक्ति का स्त्रोत जमीनों का स्वामित्व है। यदि सरकार के पास से जमीन निकल जाए तो सरकार के हाथ से अर्थव्यवस्था का नियंत्रण भी निकल जाएगा। किन्तु जिस गति से PSU बेचे जा रहे है, जल्दी ही भारत सरकार कंगाल हो जायेगी। क्योंकि असली ताकत जमीनों के स्वामित्व से आती है, कागज के नोटों से नहीं। हमारे बैंक भी तेजी से उनके कब्जे में जा रहे है। एक बार जब अमेरिकी-ब्रिटिश धनिक बैंको, जमीनों, खदानों पर स्वामित्व बना लेंगे तो वे भारत में भारत सरकार से भी ज्यादा ताकतवर हो जायेंगे।
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आप पेड मीडिया में विनिवेश के नाम पर जितनी भी खबरें पढ़ते-देखते है, दरअसल यह जमीनों की बिकवाली है। जब वे कोई PSU बेचते है तो इसमें मुख्य भाग जमीनों का होता है, और इसे अंडर वैल्यू करके दिखाया जाता है। उदाहरण के लिए मान लीजिये कि एक कम्पनी कोई PSU जैसे कोल इण्डिया वगेरह 10,000 करोड़ में खरीदती है तो उन्हें 50,000 करोड़ की जमीन मुफ्त में मिल जाती है। क्योंकि कोल इण्डिया के स्वामित्व में 50 हजार करोड़ की जमीन है। इस जमीन को कोल इण्डिया के लेखो में अंडर वैल्यू करके दिखाया जाता है, और इसे मीडिया में रिपोर्ट भी नहीं किया जाता। इस तरह जितनी भी संस्थाएं बेचीं जा रही है, उनके पास किलोमीटरो के हिसाब से जमीन है, और यह सारी जमीन विदेशियों के कब्जे में जा रही है। दुसरे शब्दों में, वे संस्थाएं नहीं, बल्कि जमीने बेच रहे है।
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मैंने लोकसभा चुनावों से पहले एक जवाब में लिखा था कि, जो भी पीएम बनेगा वह भारत की सभी राष्ट्रिय संपत्तियां, सार्वजनिक उपक्रम, खदाने, प्राकृतिक संसाधन, कीमती जमीने और आवश्यक सेवाएं प्रदाय करने वाली सरकारी संस्थाएं विदेशियों को बेच देगा। यह जवाब आप यहाँ पढ़ सकते है - अगर २०१९ में मोदी जी फिर प्र.म. बनते हैं तो पाँच सालों मे आगे क्या काम कर सकते है? के लिए Pawan Kumar Sharma का जवाब
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जिस स्पीड से अभी मोदी साहेब देश की संपत्तियां बेच रहे है, यह बात बिलकुल ठीक है कि वे LKY एवं PCH की तर्ज पर ही काम कर रहे है। बल्कि मैं कहूँगा कि मोदी साहेब इन दोनों से ज्यादा रफ़्तार से यह बेचान कर रहे है !!
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निचे मैंने कुछ न्यूज लिंक रखे है, जो बताते है कि मोदी साहेब किस रफ़्तार से बढ़ रहे है।
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नीति आयोग ने बेचने के लिए एनटीपीसी, सीमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया, भारत अर्थ मूवर्स और सेल सहित सरकारी कंपनियों की जमीन और इंडस्ट्रियल प्लांट्स जैसी 50 संपत्तियों की पहचान की है। एक अधिकारी ने बताया कि नीति आयोग ने डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टमेंट ऐंड पब्लिक ऐसेट मैनेजमेंट (दीपम) को एक लिस्ट भेजी है। उन्होंने कहा, 'हम इन संपत्तियों को बेचने की तैयारी कर रहे हैं।
assets monetisation: नीति आयोग ने बेचने के लिए बनाई 50 सरकारी संपत्तियों की लिस्ट - niti aayog readies list of over 50 central government's assets for sale | Navbharat Times
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सरकार चुनिंदा सार्वजनिक उपक्रमों में अपनी हिस्सेदारी 51 प्रतिशत से नीचे लाने की भी योजना बना रही है। अधिकारी ने कहा कि सरकार की हिस्सेदारी 51 प्रतिशत से नीचे लाने के लिए कानून में कुछ संशोधन करने की जरूरत होगी। साथ ही इससे यह भी सुनिश्चित किया जा सकेगा कि ये कंपनियां केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) और नियंत्रण एवं महालेखा परीक्षक (कैग) के नियंत्रण दायरे से बाहर आ सकें। अधिकारी ने कहा कि इस तरह का कदम संभव है। इसके लिए कंपनी कानून की धारा 241 में संशोधन करने की जरूरत होगी। उन्होंने कहा कि अगले तीन-चार साल में सरकार की शीर्ष प्राथमिकता निजीकरण की है। उन्होंने कहा, ''इसके लिए हमें प्रधानमंत्री का पूरा समर्थन है।
उस समर्थन के जरिये मुझे पूरा भरोसा है कि जो भी बिक सकता है उसे बेचा जाएगा। जो नहीं बिकने योग्य है उसे भी बेचने का प्रयास किया जाएगा।'' अधिकारी ने यह भी माना कि इस मामले में विभिन्न पक्षों द्वारा अवरोध खड़े किये जायेंगे लेकिन सरकार ने अपना मन बना लिया है।
'जो भी बिक सकता है बेचेगी सरकार, चुनिंदा सार्वजनिक उपक्रमों में हिस्सेदारी 51 प्रतिशत से नीचे लाएगी' - Lokmat News Hindi | DailyHunt
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गोला बारूद फैक्ट्रियों को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनाने की तैयारी में मोदी सरकार
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एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई) के चेयरमैन गुरुप्रसाद महापात्रा ने शुक्रवार को कहा कि देश के 6 हवाई अड्डों के निजीकरण के बाद सरकार जल्द इसका दूसरा चरण शुरू करने जा रही है। उन्होंने कहा कि अगले चरण में देश के 20-25 हवाई अड्डों का निजीकरण किया जाएगा।
अगले चरण में 20-25 हवाई अड्डों का होगा निजीकरण: एएआई चेयरमैन
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बैलाडीला के डिपाजिट 13 में 315.813 हेक्टेयर रकबे में लौह अयस्क खनन के लिए वन विभाग ने वर्ष 2015 में पर्यावरण क्लियरेंस दिया है। जिस पर एनएमडीसी और राज्य सरकार की सीएमडीसी को संयुक्त रूप से उत्खनन कार्य करना था। इसके लिए राज्य व केंद्र सरकार के बीच हुए करार के तहत संयुक्त उपक्रम एनसीएल का गठन किया गया था, लेकिन बाद में इसे निजी कंपनी अडानी एंटरप्राइजेस लिमिटेड को 25 साल के लिए लीज हस्तांतरित कर दिया गया। डिपाजिट 13 के 315.813 हेक्टेयर रकबे में 250 मिलियन टन लौह अयस्क होने का पता जांच में लगा है। इस अयस्क में 65 से 70 फीसदी आयरन की मात्रा पायी जाती है
बस्तर : बैलाडीला की 13 खदान अडानी को बेचने पर पचास हजार आदिवासी विरोध करने के लिए घरों से निकले; आज से अनिश्चितकालीन धरना शुरू
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सरकार अब मुनाफा कमाने वाली सरकारी कंपनियों के निजीकरण पर विचार कर सकती है। इससे पहले घाटे में चल रहे सेंट्रल पब्लिक सेक्टर एंटरप्राइजेज (CPSE) को ही विनिवेश करने की नीति रही है। एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि सरकार नीति आयोग से ऐसी नॉन-स्ट्रैटिजिक प्रॉफिटेबल कंपनियों की लिस्ट बनाने को कह सकती है, जिनका निजीकरण किया जा सके।
Business News: प्राइवेट सेक्टर के हाथ बेची जाएंगी मुनाफे में चल रहीं सरकारी कंपनियां! - big shift in disinvestment policy: plan to privatise profitable cpses in works | Navbharat Times
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मैंने मई 2019 के बाद की ये कुछ ख़बरें रखी है। ज्यादा लिंक डालने से जवाब स्पैम हो जाएगा, अत: मैं उन्हें यहाँ रख नहीं रहा हूँ। और अधिक जानकारी के लिए आप गूगल कर सकते है। पढ़ते पढ़ते थक जायेंगे, पर खबरें ख़त्म नहीं होगी।
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समाधान ?
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मैं भारत की सेना एवं अर्थव्यवस्था को अमेरिकी-ब्रिटिश-फ्रेंच कंपनियों के हवाले करने के सख्त खिलाफ हूँ। भारत में ब्रांडेड नेताओं को फोलो करने वाले कार्यकर्ता इस "विकास" की ख़ुशी में छतों से छज्जो पर इसीलिए छलांगे लगा रहे है क्योंकि वे दो तथ्यों से अनजान है :
उन्हें नहीं पता कि अमेरिकी-ब्रिटिश कम्पनियों पर निर्भरता का क्या परिणाम होता है, और कितने देश इसे भुगत रहे है।
उन्हें यह जानकारी नहीं है कि अमेरिकी-ब्रिटिश कम्पनियां तकनीक के क्षेत्र में इसीलिए आगे निकल गयी क्योंकि उन देशो में बेहतर क़ानून व्यवस्थाएं है।
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मेरा मानना है कि यदि भारत के कार्यकर्ताओ को इन दो तथ्यों के बारे में सटीक जानकारी मिल जाए तो वे उधार की इस समृद्धि का विरोध करना शुरू कर देंगे।
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(1) एफडीआई के साइड इफेक्ट्स जानने के बारे में यह जवाब पढ़ें - प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति क्यों दी जाती है? इससे हमें क्या फायदे और नुकसान होंगे? के लिए Pawan Kumar Sharma का जवाब
https://hi.quora.com/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A5%80-%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%B6-FDI-%E0%A4%95%E0%A5%80/answers/124760141?ch=10&oid=124760141&share=23948cc1&srid=5XEL1l&target_type=answer
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(2) किन कानूनों की वजह से अमेरिकी-ब्रिटिश कम्पनियां अन्य देशो की कम्पनियों की तुलना में आगे निकल गयी इस बारे में कृपया यह जवाब पढ़ें - भारत क्यों अमेरिका से पीछे हैं? के लिए Pawan Kumar Sharma का जवाब
https://hi.quora.com/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4-%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%9B%E0%A5%87/answers/178397074?ch=10&oid=178397074&share=0aaeefcb&srid=5XEL1l&target_type=answer
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