✨ "मैं अब भी चल रही हूँ..." ✨
कभी टूटी थी खामोशी में,
कभी बिखरी थी भीड़ में,
पर हर बार उठी मैं,
अपने ही इरादों की रीढ़ में।
किस्मत ने मोड़ दिए कई,
कुछ रास्ते अधूरे रह गए,
पर दिल ने हौसले की चादर ओढ़ी,
और सपने फिर से बह गए।
ना कोई मंज़िल साफ़ दिखी,
ना कोई राह आसान थी,
पर मैं रुकी नहीं, थकी नहीं,
बस चलते रहना मेरी पहचान थी।
- शिवांगी विश्वकर्मा