ग़ज़ल
उजल अरमानों को रुला दिया किसी ने,
चाँदनी रातों में कष धुआँ किया किसी ने।
ख़्वाब जो आँखों में गर सजाए थे कभी,
रात के सन्नाटे में जला दिया किसी ने।
खशारा़ के फूलों से जो जंगल से जोड़ा,
विर्क शाख़ें भी फिर तोड़ दिया किसी ने।
वादा किया था जज्बा ए गफल का जो,
ताब बीच सफ़र में छोड़ दिया किसी ने।
कम सिन पलकों पे लिखे थे जो नाम उसके,
रूठ के यादों को भी गमछोड़ दिया किसी ने।
फिरक़ का दिया जलाया था कभी बेताबीसी ये
रूख ए रोश्न लौ को ही बुझा दिया किसी ने।
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जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर
मननं कुरु, चिन्तनं कुरु, कर्मभावं धारय the importance of reflection, contemplation, and maintaining the spirit of action (karma). - लोकः समस्ताः सुखिनो भवन्तु में समाहित सहज सनातन और समग्र समाज में आदरजोग सहित सप्रेम स्वरचित