जिंदगी से बड़ी सजा ही नहीं (x2)
और क्या जुर्म है पता ही नहीं
जिंदगी से बड़ी सजा ही नहीं
इतने में बात गया हूँ मैं (x3)
मेरे इसमें कुछ बचा ही नहीं (x2)
जिंदगी से बड़ी सजा ही नहीं
सच घटे या बढ़े तो सच ना रहे (x3)
झूठ की कोई इंतेहा ही नहीं (x2)
जद दो चाँदी में चाहे सोने में (x3)
आइएना झूठ बोलता ही नहीं (x2)
जिंदगी से बड़ी सजा ही नहीं
❤️
- Umakant