श्मशान की भभूति का शृंगार करके,
भूतों की टोली के संग शिव चले।
गले में कंकाल की माला, ललाट पर त्रिनेत्र,
हाथ में डमरू और त्रिशूल लेके शिव चले।
महलों में रहने वाली दक्ष की प्रिय पुत्री,
मलमल पर चलती थी मृदुला के भाती थी,
प्रणय के पथ पर श्मशान की राह, शिव संग चले।
ये थी समस्त सृष्टि के सर्जन की रात,
जब शिव एक लिंग आकर में साकार हुए,
इन निराकार नीलकंठ को अर्चन करने, भक्त गण चले।
ब्रह्म और विष्णु ने अपने बल की प्रतियोगिता लगाई,
भयभीत समस्त देव गण ने शिव की स्तुति गाई,
मेरे देवाधि देव ने निराकार स्वरूप से अपनी योग्यता बताई,
उस दिन सभी देवों ने माना, शिव की महिमा गाई।
ये रात्रि है नील को कंठ में रखने की
ये रात्रि है शिव और शक्ति की मिलन की,
ये रात्रि है गंगा को जटा में धारण की,
ये रात्रि है निराकार को लिंग में साकार होने की।
आज पर्व आया है ऐसा, महादेव की महिमा का,
सृष्टि के कण कण में, महाकाल को पाने का,
मनाए आज की रात्रि भूतों के महराज की,
दर्शन मात्र से ही जीव, शिव के संग चले।।।।
भूपेन पटेल