चलते-चलते राहों में,सौ मक़ाम थे ज़िंदगी ने दिखाए,,
कहीं गुलों की सेज़ बिछी,कहीं धधकते पलाश बरसाए,,
अनगिनत यादें,अधूरी ख़्वाहिशें, झोली में समेटे रही चलती,
हर मक़ाम को सींचा लहू से,ज़ख्मों को दुनिया से छिपाए..!!

Hindi Shayri by Monika Agrawal : 111772707

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