"उस पल की ख़ुशबू"
वो कोई पहली बारिश नहीं थी,
पर उसकी आहट कुछ अलग सी थी।
ना कोई वादा, ना कोई नाम,
फिर भी दिल ने कहा — "ये है मेरा मुक़ाम।"
बातें कम थीं, लेकिन ख़ामोशियाँ कहती थीं,
वो जो लिखा न गया, वो ही सबसे सच था।
उसने हाथ थामा कुछ यूँ,
जैसे कोई बीती ज़िंदगी लौट आई हो।
[यह एक छोटी सी कविता है जो मेरी कहानी "“तुम्हारे नाम अब भी धड़कता है" को बयां करती है।]
-शिवांगी विश्वकर्मा