आंखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा
कश्ति के मुसाफिर ने समुंदर को नहीं देखा
बे-वक्त अगर जाउंगा सब चौंक पडेंगे
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा
जिस दिन से चला हूं मिरी मंजिल पे नजर है
आंखो ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा
ये फुल मुझे कोई विरासत में मीले है
तुमने मिरा कांटो भरा बिस्तर नहीं देखा
यारों की मोहब्बत का यकीं कर लिया मैंने
फूलों में छुपाया हुआ खंजर नहीं देखा
महबूब का घर हो कि बुजुर्गो की जमीनें
जो छोड दिया फिर उसे मुड कर नहीं देखा
खत ऐसा लिखा है कि नगीने से जडे है
वो हाथ कि जिस ने कोई जेवर नहीं देखा
पत्थार मुझे कहता है मिरा चाहने वाला
मैं मोम हूं उसने मुझे छू कर नहीं देखा
.....बशीर बद्र
❤️